शिवपंचाक्षरी स्तोत्र (Shivapanchakshari stotra) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ०२ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में ‘शिवपंचाक्षरी स्तोत्र' के बारे में बताया।
तो हम लोग ये जानते हैं, पंचाक्षरी मंत्र, ॐ नमः शिवाय, इसमें बहुत सारी ताकद है, भारत में सबसे ज्यादा मंदिर किसके हैं, तो शिवजी के हैं और हनुमानजी के हैं। हनुमानजी तो बहुत जगह, शिवजी के ही साक्षात अवतार माने जाते हैं, उनकी पूँछ जो है वो उमाजी का रूप मानी जाती है। तो ये जो शिवजी हैं, उनका वर्णन कैसा है, हम लोग सुनते हैं, कर्पूरगौरं करुणावतारं। कर्पूरगौरं, कपूर जैसा होता है, camphor, उसके जैसा शुभ्र यानी spotless absolutely, और सचमुच शिवजी के रुप में, शिवजी के मन में, शिवजी का प्रत्येक रुप, प्रत्येक कृती spotless होती है।
अब आप लोग पूछेंगे कि बापू! जो परमशिव है, वही महाविष्णू है, वही प्रजापतिब्रह्मा है। ये भेद क्यों निर्माण किए गये हैं। एक ही आदमी को तीन काम क्यों नहीं दिये गये। लेकिन बात क्या है, इसलिये हमे पहले ये जानना चाहिये कि परमात्मा के जो तीन स्वरुप हैं, एक ही परमात्मा के, ये कार्य के उद्दिष्ट से, जैसा उनका रुप होना चाहिये, जैसा उनका बर्ताव होना चाहिये, आचरण होना चाहिये, उस हिसाब से ये रुप आदिमाता ने बनाये हुए हैं।
हम लोग कहते हैं कि नाम में क्या है, रूप में क्या है, लेकिन पहले हम वो ही देखते हैं, सभी का देखते हैं, इन्सान का भी देखते हैं। और हम लोग बोलते भी हैं, बाहर से इतना अच्छा दिखता है, लेकिन अंदर से अलग है। लेकिन भगवान के मन में भी वैसे ही होता है। महाकाली को देखने के बाद मन में डर पैदा होता है। बाप रे! यहां जाऊँ या नहीं जाऊँ, प्रणाम करूं या ना करूं, कुछ माँगू या नहीं माँगू? राइट? रामजी जो हैं हमारे पास, तो रामजी के सामने खडे होने के बाद, क्या यार ये कुछ नहीं करते, भोले हैं। शिवजी तो भोलेनाथ हैं, कुछ भी बोलो उनके साथ, कुछ भी करो, चल जाता है।
यानी उनके रूप पर भी हमारे मन की बहुत सारी भावनाएं निर्भर करती हैं। हमें जानना चाहिये कि ये सारे हमारे मन के केंद्र होते हैं। उनके पास जो भी भावनाएं हैं या जो भावनाएं हमें प्रतीत होती हैं, हमारे मन से हैं। उनके पास ये division नहीं है। There is only division of work. वो एक ही इन्सान को अगर काम कर सकता है, तो इतने रुप क्यों बदलने हैं? इसका रहस्य इस शिवपंचाक्षरी स्तोत्र में किया हुआ है।
शिवपंचाक्षरी स्तोत्र सिर्फ पाँच श्लोकों का स्तोत्र है, लेकिन मैंने बार बार कहा है, इस स्तोत्र का अर्थ बहुत गहरा है। ये शिवपंचाक्षरी स्तोत्र हमें बताता है, एक ही परमात्मा के ये रूप, प्रजापति ब्रह्मा, महाविष्णु, परमशिव् इन तीन रूपों का निर्माण क्यों किया गया है, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।