Sadguru Shree Aniruddha’s Pitruvachan (Part 2) – 31st January 2019
हरि ॐ, श्रीराम, अंबज्ञ, नाथसंविध्, नाथसंविध्, नाथसंविध्.
कितनी बार हम लोग इन शब्दों का प्रयोग करते हैं? ‘बहुत देर हुई’....राईट? क्या कहते हैं? ‘बहुत देर हुई’। कहाँ जाना है, कहाँ से निकलना है, कहाँ जा पहुँचना है, कुछ हासील करना है, कुछ पाना है। हमें सब चीज़ों में ऐसा लगता है, सब बातों में ऐसा लगता है, कि जो टाईम है, उसके पहले सब कुछ हो जाये, तो बहुत अच्छा! लेकिन यह Time चीज़ क्या है? समय क्या है? देरी क्या है? कौन जानता है? हमें जो लगता हैं ‘देरी से हुआ’, वही सही वक़्त हो सकता है, यह ध्यान में रखना आवश्यक है।
एक बात सोचकर देखिये, एक साल में कितने महीने होते हैं? 12। कितने दिन होते हैं? 365, तीन सौ पैंसठ। इनमें घंटे कितने हुये? X (into) 24, राईट? उनमें मिनट्स कितने हुए? multiplied by 60. सेकंड कितने होंगे? और multiplied by 60। Difficult है। जिनको करना है calculation, वे करते रहें, मेरे बस की बात नहीं है। लेकिन हमें यह जानना चाहिए कि हमारे बदन में कितनी सारी पेशियाँ हैं, how many cells our body possesses? Trillions and Trillions of cells; और ये सारे cells जो हैं, पेशियाँ जो हैं, हर सेकंड काम करती रहती हैं। हर सेकंड में, हर पल में काम करती रहती हैं। एक इन्सान के एक शरीर में इतनी सारी पेशियाँ होती हैं, राईट? और इन सारी पेशियों को संचालित कौन करता है? प्राण करता है, प्राणशक्ति करती है। यह प्राण कहाँ से आता है? महाप्राण हनुमानजी से आता है। महाप्राण कहाँ से आता है? माँ जगदंबा से आता है। इसका मतलब क्या है? इतने सारे इन्सान हैं, इतने सारे प्राणि हैं, पशु हैं, पक्षी हैं, इनमें सारीं मिलकर कितनी पेशियाँ होंगी? सब पेशियों में काम करनेवाला, इन्सान में काम करनेवाला, इन्सान से काम करानेवाला जो प्राण है, यह प्राण तो है एक ही। तुम बोलोगे, ‘बापू, ऐसा कैसे? Mr. A हैं, जो मर गये, तो उनके प्राण चले गये; (लेकिन) जो Mr. B हैं, उनके प्राण उनके पास बचे हैं।’
‘गये’....लेकिन गये कहाँ? हमें जानना चाहिये कि जैसे हम जानते हैं, एक हवा है, पृथ्वी के बाजू में एक अवकाश है - अपना और पृथ्वी का खुद का; जिसे हम atmosphere कहते हैं। वैसे ही, इस जीवनीय शक्ति का यानी प्राण का भी एक अवकाश होता है, एक space होती है। यह प्राणशक्ति भी हर जगह जो फैली हुई है, distribute हुई है हमारी पेशीयों में, हर एक व्यक्ति में है, हर एक पशु में है, हर एक पक्षी में है; वैसे ही यह प्राणशक्ति जो है, वह अजीव वस्तुओं में भी हैं। मैंने ग्रन्थ में लिखा है ‘प्रेमप्रवास’ में, कि महाप्राण तो दोनों में है - अजीव में भी और जीव में भी। लेकिन जीव में, प्राणशक्ति विकास करने की शक्ति प्रदान करती है। लेकिन जो अजीव है यानी टेबल है, कुर्सी है, पत्थर है, इनमें विकास करने की क्षमता नहीं है; सिर्फ़ अस्तित्व की क्षमता होती है। हम इन्सान के पास अस्तित्व की भी क्षमता है, विकास करने की भी क्षमता हैं और खुद की अधोगति करने की भी क्षमता है। प्राणियों के पास खुद की अधोगति करने की क्षमता नहीं है। लेकिन इन्सान के पास बुद्धि है, इन्सान सीख सकता है और प्राणियों की अपेक्षा बहुत जल्दी सीख सकता है।
हमें यह सीखना चाहिए ज़िंदगी में, कि सब जगह जाकर जल्दी-जल्दी-जल्दी में हम रहते हैं, इस ‘जल्दी’ वाली बात को थोड़ासा बाजू में रख देना चाहिए। सही समय पर सही करना ‘वह’ जानता है। हमें जल्दी हो सकती है, हम इन्सान हैं। कहीं जा पहुँचना है, तो हमें लगता हैं - ‘जल्दी जाऊँगा तो अच्छा है’। अब ऐसा है कि बेटा-बेटी, छोटा बच्चा है, स्कूल में वेट कर रहा है और वहाँ जाने के लिए आप जल्दी में हैं, तो सही है। लेकिन क्या हर बात में ‘जल्दी, जल्दी, जल्दी, जल्दी’ ये शब्द उच्चारना ठीक है? हमारा हार्ट हर मिनीट में ७२ टाईम्स beat करता है; अगर आप बोलते हो कि वह जल्दी-जल्दी beat करें, तो क्या होता है? धड्..धड्..धड्कने लगता है, डर लगता है। श्वास मिनट में १८ बार होता है ज्यादा से ज्यादा, १६ बार-१८ बार; इससे ज़्यादा हो गया तो? उसे ‘दमा’ कहते हैं, ‘अस्थमा’ कहते हैं, ठीक है? इधर ‘जल्दी’ ठीक है क्या? [ना] यानी इसका मतलब है कि निसर्ग ने, इस प्रकृति ने, उस माँ जगदंबा ने हमें सब कुछ जो दिया है, उसकी गति निर्धारित करके दिया है। उसके हिसाब से ये पंचमहाभूत कार्य करते हैं और हम सब लोगों के देह पंचमहाभूतों के ही बने हुए हैं। इसलिए जो भी घटना घटती है, उसमें अगर देर हो गई और यदि हम सच्चें श्रद्धावान हैं, तो मालूम होना चाहिए कि ‘देर होना’ यह किसकी इच्छा है? भगवान की इच्छा है, (क्योंकि) ‘वह’ जानता है ‘सही’ क्या है।
अभी थोड़े दिन पहले की बात है। एक पती-पत्नी अपने दो बच्चों को लेकर पिकनिक पर गये हुए थे। पिकनिक यानी, वह आप लोग जो छुट्टी के दिनों में जाते हैं Hiil Station पर; वैसे जाने के लिए निकले, तो उनकी कार बिगड़ गयी, रास्ते पर छोड़ना पड़ा। उसके कारण, जिस ट्रेन से जाना था, वह ट्रेन लेट नहीं हुई थी, वह टाईम पर थी और इस वजह से वह छूट गयी थी। इन लोगों ने फिर से टिकट खरीदे और दो घंटे के बाद की दूसरी ट्रेन से गये। बाद में जिस हॉटेल में गये, उस हॉटेल में जाने के बाद मालूम पड़ा कि बुकींग हुआ ही नहीं था इधर। तो तीन-चार हॉटेल ढूँढ़कर जैसे तैसे रहने लगे। तीन दिन तो ऐसे ही निकल गये। चौथे दिन उन्हें जाना था बोटिंग के लिये। Decide किया था, बोटिंग करने को निकल गये। वहाँ तक जाते जाते चार, पाँच बार इतनी difficulties आयीं उस स्थल तक, फिर भी जाते रहे। देरी हो गयी थी, अँधेरा हो रहा था। बस्स्, लास्ट फेरी बाकी थी। So last boat में बैठने गये और उतने में एक छोटा बच्चा आया और उसने एक ‘ठाक’ करके धक्का मारा और जो पिता थे उसमें, जो main gentleman थे, वे गिर पड़े और हाथ की हड्डी टूट गयी। तो गाली देने लगे - ‘हे भगवान, क्या कर रहा है हमारे साथ?’ गाली देते ही बैठा था वहाँ, ‘हाथ दुख रहा है।’ ड्रायव्हर गया डॉक्टर को लाने के लिए; और बीस मिनट बाद उन्होंने देखा कि उनकी आँखों के सामने वही नैया डूब रही थी। जिसमें जो आठ लोग गये थे, सब के सब नीचे। तब याद आया, किसीने बोला था, ‘इस छुट्टी में बाहर किधर नहीं जाना’। o.k.? अब हड्डी टूट गयी, लेकिन जान बच गयी। सब जगह देरी हो रही थी देखो, लेकिन वह देरी किस लिए थी? कि जान ना जायें। Right? हमें ये जानना बहुत आवश्यक है। अगर हम लोग श्रद्धावान हैं, सही श्रद्धावान हैं, सही लगन से ‘उससे’ प्यार करते हैं, भक्तिभावचैतन्य में रहते हैं, तो हर ‘देरी’ भी हमारे मतलब की बात होती है, हमारे फ़ायदे की चीज़ होती है। क्योंकि ‘वह’ जानता है, कौनसी चीज़ कभी लानी है ज़िंदगी में। अगर जल्दी लायी और नुकसानकारक होनेवाली है, अहितकारक होनेवाली है, तो ‘वह’ आने नहीं देगा....निश्चित रूप से। क्योंकि ‘वह’ ऐसा पिता है, जो जानता है, बच्चा कितना भी रोयें, रोने दो....उसे मैं पेट्रोल पीने नहीं दूँगा। समझे? ज़हर पीने नहीं दूँगा। So, moral of the story जान गये? यह story नहीं जो बतायी, वह घटना है, सिर्फ एक्कीस दिन पहले घटी हुई।
So, जानना सिखो जिंदगी में....कहीं भी ज़्यादा जल्दी मत करना। जहाँ जल्दी की आवश्यकता नहीं है, वहाँ जल्दी नहीं करना। गाड़ी या बाईक, four wheeler, two wheeler चला रहे हैं, तो speed हमारे कितने रहते हैं, मैं देखता हूँ - 120, 130, 140 अरे वाऽऽऽवाऽऽऽवाऽऽवाऽऽऽ; और रात के समय specially आप लोक गाड़ी चलाते हो, एक ही एक रास्ता होता है, खाली रास्ता होता है। उस समय हमारा mindset जो है, वह पूरा का पूरा एक विशिष्ट तरीके से focus हो जाता है कि हमें नशा चढ़ने लगती है जैसे; और वहीं accident होता है। मैंने बार-बार बताया है कि अगर car में प्रवास कर रहे हो, A.C. car है, तो हर डेढ़ घंटे के बाद पाँच मिनट के लिए खिड़की खोलनी आवश्यक है, नहीं तो कार्बनमोनॉक्साइड जमा होता है, अगर चार लोग बैठे हैं car में, तो। और उससे इन्सान की मृत्यु हो सकती है। कितने लोग सुनते हैं? आठ-आठ घंटा प्रवास करते हैं, एक बार भी खिड़की नीचे नहीं करते। बाईक पर बैठते हैं, two wheeler पर बैठते हैं। ‘हेल्मेट क्यों पहनना भाई? कुछ नहीं होता।’ जब होएगा, तब सब कुछ हो जाएगा ना? बाकी रहेगा ही नहीं कुछ। और दूसरी एक style है - आगे बैठनेवाला वही सिर्फ़ हेल्मेट पहनता है। पीछे बैठनेवाली या बैठनेवाला, क्या उसको जरूरत नहीं है हेल्मेट की? यह क्या तरीका है? ऐसा है क्या कि आधा part बाईक का जो है, वह dangerous है और पिछला भाग dangerous नहीं है? वह ज़्यादा dangerous होता है actually। लेकिन हम लोगों को यह क्या लगता है? burden लगता है कि क्यों हेल्मेट पहनने का? बच्चों, हेल्मेट पहनना सिखो। पीछे जो बैठता है या बैठती है, उसे भी हॅल्मेट पहनना आवश्यक है, किसके लिए? हम खुद के लिए। भगवान तो है ही हमें संभालने के लिए; लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम कुछ भी करते रहें।
So, पहली बात क्या है? जल्दी नहीं करना है और जब भी travel करना हैं, तो कैसे करना हैं? सही तरीके से करना है। Right? तैरना नहीं आता, तो तैरने के लिए पानी में नहीं उतरना है। Right? नक्की? [नक्की]
क्यों? क्यों? क्यों? क्यों?
क्योंकि अगर आप लोगों ने मेरा नहीं सुना, तो आप जानते नहीं, मैं इतना खडूस बाप हूँ, इतना खडूस हूँ मैं कि जितनी मार (आपने) नहीं खायी होगी, उतनी मार आकर, पकड़-पकड़कर मारूँगा। लगेगी जरूर, लेकिन बाकी कुछ नहीं होगा। O.K.? So, यह ‘नक्की’ किसलिए? इससे (मार से) बचने के लिए। प्यार से नहीं, O.K.? मैं टेढ़ी ऊँगली से घी निकालना अच्छी तरह जानता हूँ और चाहे तो बॉटल फोड़कर भी घी निकाल सकता हूँ।
तो now promise? नक्की? [नक्की] नक्की? [नक्की] नक्की? [नक्की]
बाईक पर बैठते हो without हेल्मेट, car की खिड़कियों की जो glasses है, उन्हें नीचे करते नहीं हो हर घंटे, right? अरे, कहाँ-कहाँ मैं दौड़ता फिरूँगा? थोड़ा तो सोचो, right? Ok? Love you all [Love You] Love you all [Love You]