Sadguru Shree Aniruddha’s Pitruvachan (Part 2) – 24th January 2019
हरि ॐ, श्रीराम, अंबज्ञ, नाथसंविध्, नाथसंविध्, नाथसंविध्.
कष्ट के बिना फल नहीं, ओ.के? और बाकी सारी चीज़ों के लिए तो हमलोग कष्ट करते रहते हैं। We go on putting our all efforts in everything....whatever we desire for. जो हमे चाहिए, उसके लिए हम लोग बहुत प्रयास करते रहते हैं.... मन से, तन से, धन से; लेकिन ये सब चीज़ें जो देता है, उसके लिए हम कितने श्रम करते हैं? ये कभी ना कभी सोचना चाहिए। मेरे भगवान के लिए मैं कितने परिश्रम करता हूँ? हमें लगता है, भगवान के लिए परिश्रम करना यानी क्या? सेवाकार्य में भाग लेना, दूसरों की सेवा करना, दरिद्रनारायण की सेवा करना, पीडितों की सेवा करना....सब कुछ सही है। लेकिन सबसे ज़्यादा आवश्यक है, ‘मैं 'उस'के लिए क्या करता हूँ’। दिन में कम से कम एक चीज़ उसके लिए करनी चाहिए, बराबर? तुम कहोगे, 'हाँ.... हाँ बापू! हम हार डालते हैं, एक दिया जलाते हैं, एक उदबत्ती जलाते हैं.... राईट? अरे फोटो घर में रखा है यही बहोत हो गया।' राईट? मे बी ट्रू।
लेकिन 'उस'के लिए क्या करता हूँ मैं खुद हर रोज़, यह सोचना चाहिए। उसके लिए क्या कर सकते हैं? कुछ भी....सबकुछ....सादी सादी चीजें होती हैं, जैसे कि, दिया जलाते समय, उदबत्ती लगाते समय हम पूरे मन से 'उसे' कह दें - ‘यह दीप, हे भगवान, तुझे दिखाने की क्या आवश्यकता है? तू तो अंधेरे में भी सब कुछ देख सकता हैं; लेकिन फिर भी मैं यह दीप जला रहा हूँ तेरे लिए, क्योंकि मुझे मालूम है, मैं जब भी अंधेरे में होता हूँ, तू वहाँ रोशनी लाता है’ यह सोचना उसकी सेवा करना है। हररोज़ सुबह उठने के बाद उसे बोलना, जो भी नाम आपको अच्छा लगता है (वह लेकर), ‘हे भगवान! तू मेरा है और मैं सिर्फ तेरा हूँ’। इसका मतलब यह नहीं कि आप संन्यासी हो गये...अपने सारे रिश्तेदारों से रिश्ता तोड़ दिया। ‘तू मेरा है और मैं तेरा हूँ, मैं तेरा दास हूँ, तू जो चाहे करवा ले, मैं करने को तैयार हूँ’, यह सेवा है, ओ.के.? हररोज मैंने बोला है आप लोगों को, कि यह लाईफ कैसा हो गया आजकल? सेडेन्टरी हो गया। ३०-४० साल पहले, औरतों के लिए ना ये मिक्सर थे, ना ओव्हन्स थे, ना मायक्रोवेव्ह्ज् थे, ना गॅस के चूल्हे थे। हम लोग भी कॉलेज जाते थे, तब साइकिल पर जाते थे, नहीं तो चलकर जाते थे, ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ते थे, घूमते थे। अगर १५-२० मिनट का चलना है, तो बाईक होने के बावजूद भी बाईक लेकर जाना मन में भी नहीं आता था। आजकल जॉब भी कैसा होता है, आराम से चेअर पर बैठकर। घर में आने के बाद बस्स् बैठे रहते हैं सोफ़े पर टी.व्ही देखते हुए, नहीं तो अपने मोबाईल के साथ। It's called as sedentary lifestyle. इससे क्या होता है? इससे सारे दुष्परिणाम उसके हमारे तन और मन पर होते रहते हैं। So हमारी खुद की सेहत अच्छी रखना, हमारा खुद का मन और तन ऍक्टीव रखना, यह भी ‘उस’की सेवा है यह जान लो। यह कैसे? जब तुम्हें तकलीफ़ हो जाती है, कष्ट कौन उठाता है? ‘वह’ उठाता है। Keep the rule of 20-20-20. In Medicine, it's called as Rule of 20-20-20. एक जगह बैठे हो, तो 20 मिनट के बाद उठना जगह से, 20 फीट की दूरी तक देखना - Look at the distance of 20 feet. Then walk for 20 seconds - 20 सेकंद चलना, फिर चलकर वापस आना, (20+20) 40 सेकंद; फिर बैठ जाना। अब पिक्चर देखते बैठे हो, तो ऐसा मत करना; लोग पत्थर मारेंगे। लेकिन काम करते समय, अपने घर में आराम से टी.व्ही. देखते समय ध्यान मे रखना आवश्यक है कि हर 20 मिनट के बाद अगर हम लोग ज़्यादा बैठते हैं, तो हमारे मसल्स टेन्स्ड् हो जाते हैं, उनमें टेन्शन बढ़ जाता है। उससे क्या होता है? शरीर में विकृतियाँ, Abnormalities, Pathologies तयार होती हैं। इसीलिए Rule of 20-20-20. कितना भी Healthy, Muscular, मस्क्युलर, Gym जानेवाला, व्यायामशाला में जानेवाला पर्सन क्यों ना हो; (अगर वह) चालीस मिनट चलें, कोई प्रॉब्लेम नहीं होगा; लेकिन यदि 20 मिनट से ज़्यादा एक ही पोझीशन में बैंठा रहें, तो शरीर को बहुत तकलीफ़ होती है और मन को भी तकलीफ़ होती है। हम जब ज्यादा समय बैंठते है, तो हमारे ब्रेन्स में ऐसे केमिकल्स तयार होते हैं, जो हमें नैराश्य देते है, Depression देते है, Anxiety देते हैं, भय देते हैं। यह जानकर चलते रहना। मैंने 2000 साल मे बताया था सबको, यहीं प्रवचन में - ‘कम से कम देड घंटा चलना चाहिए, कम से कम एक घंटा तो चलो। एक घंटा continuous चलने को ना मिलें, तो २०, २०, २० मिनीट्स three-times चलो....चलते रहो| कितना मानते हैं हम लोग? नहीं करते, राईट? तुम कहोगे, ‘मैं इतनी दुबली पतली हूँ, मुझे क्यों चलना चाहिए?’ अरे सबको चलना चाहिए; सिर्फ मोटे हैं उनके लिए नहीं। सबका दिमाख एक जैसा ही है, मन में केमिकल्स वे ही हैं सबके। They are called as 'Neuro-Chemicals'. सब के वे ही होते हैं। तो यह चलना भी उसकी सेवा है और इसके साथ साथ उसका नाम रटना, यह भी उसकी सेवा है।
सिर्फ जब हमारी कुछ माँगें होती हैं, तब हम ‘उस’के पास जाते हैं, ‘उस’का स्तोत्र गाते हैं। वह ‘उस’की सेवा नहीं होती, वह तो खुद की सेवा होती है। लेकीन कोई माँग नहीं है, फिर भी उसके लिए (स्तोत्र बोलना)। दादा ने अगर बोला है, ‘ग्यारह बार यह स्तोत्र बोलो, काम हो जायेगा’, तो ग्यारह बार बोलो खुद के लिए, फिर एक बार बोलो ‘उस’के लिए; यह ‘उस’की सेवा होगी। रामनाम बही लिखना है डिजीटल या नोटबुक पर, यह ‘उस’की सेवा है। यह मंत्रगजर करना, सोलह माला करना....‘उस’की सेवा है। ‘उस’ने जो अनुभव दिये हैं मुझे या मेरे दोस्तों को या पहचानवाले लोगों को, उन्हें याद करना यह सेवा है, ओ.के? प्रदक्षिणा करना....सेवा है, पाद्यपूजन करना....सेवा है, पादुकापूजन करना....सेवा है, त्रिविक्रममठ में जाना....सेवा है, गुरुक्षेत्रम् में आना....सेवा है, गुरुक्षेत्रम् में लोटांगण यानी साष्टांग नमस्कार करना....सेवा है। हम ‘सेवा’ का अर्थ ही नहीं जानते। ‘भज सेवायाम्’, भजन करना ‘सेवा’ है। हम लोगों ने अब भजन सीखा है। ये सभी सेवाएँ हैं और ये सेवाएँ ‘उसे’ सबसे ज़्यादा प्रिय लगती हैं। जितना भक्त, श्रद्धावान भक्तिरस में आनंद पाने लगता है, उससे दस गुना वह भगवान प्रसन्न होता रहता है। इसे कहते हैं ‘रसमाधुरी’, क्या कहते हैं? रसमाधुरी। क्योंकि ‘वह’ खुद मधुर है, मधुराधिपतये अखिलं मधुरम्। So जब हम हमारी भक्ति में माधुर्य लाते है, तो ‘उसे’ अच्छा लगता है। ‘उसे’ अच्छा लगना, यही ‘उस’की सेवा करना है, राईट?
हमारे पास ‘उस’की मूर्ती है, ‘उस’की तसबीर है, ‘उस’का लॉकेट है, जो भी है....उसे कभी स्नान दिलाया है खुद? जब खुद स्नान को जाते हो ना, एक बार मूर्ती भी लेके जाना। सामने स्टूल पर रखना और पहले खुद स्नान करना, बाद में उसे भी सोप लगाओ, शॅम्पू लगाओ, यस्स्! कोई विधि की, किसी मंत्र की आवश्यकता नहीं है। बाद में उसके लिए अलग टॉवेल रखना, उस टॉवेल से पोछना। करके देखो, उससे रसमाधुर्य उत्पन्न होता है। एक दिन खाना खाते समय उसकी मूर्ति को या तसबीर को तुम्हारे बाजू में रखो या सामने रखो। हर एक निवाला जो हाथ में लेंगे, पहले उसके मुँह को लगाना, बाद में खुद खाना; और उसके बाद में उसका मुँह पोछने के लिए भूलना नहीं! और सिर्फ जितना तुम्हें चाहिए उतना ही उसे मत चखाना; उससे पूछना, ‘और चाहिए?’। यह करके देखना, Feel that this is NOT a non-living entity. ‘यह तस्वीर non-living नहीं है, यह अजीव नहीं है, यह ‘जिवंत’ है’ यह मानकर सेवा करना। करके देखो। कोई हसें, तो हसने दो; हसनेवाले कुछ काम के नहीं होते। हमारे जीवन में जो कुछ भी होता है, उसे हसते रहते हैं (वे लोग), कुछ काम के नहीं होते हैं। देने को कोई नहीं आता, सहायता करने को कोई नहीं आता। यह कितनी भी मूर्खता लगें, लगने दो, हमें क्या फरक पडता है! लोगों के कहने पर हमारे जीवन में कभी सुधार हुआ है? लोगों ने तुम्हें पैसे दिये हैं अभी तक, कि ‘ये दस करोड ले और सुख से रह ले’; ‘चलो ये डिग्री ले ले, स्कूल में जाने की जरूरत नही’; ऐसी किसी ने लाकर दी भी, तो बाद में प्रॉब्लेम होनेवाला है, राईट?
ये सब सेवाएँ होती हैं, यह ध्यान में रखना। अभी जब अपना कोई उत्सव रहता है, तो मार्केट में समझो चंपा के फूल बड़े महंगे हो जाते हैं। तब हमें याद आती है कि ‘लेने चाहिए, लाने चाहिए, ‘उस’को अच्छे लगते हैं।’ लेकिन बाकी के दिन, यानी समझो तुम्हारा बर्थ डे है, उस दिन मैं जाकर चंपा के फूल ढूँढकर लाऊँगा कहाँ से भी। इस बज़ार में ना मिलें, उस बज़ार में जाऊँगा, लेकिन उसकी फोटो पर कम से कम एक फूल तो चढाऊँगा....यह ‘सेवा’ है। ‘उस’के बर्थ डे के दिन, ‘उस’के सामने बैठकर, केक काटकर, मोमबत्ती जलाकर ‘हॅपी बर्थ डे’ बोलना, यह उसकी ‘सेवा’ है, समझे?
So सेवा की परिभाषा जान लो, ‘सेवा यानी शुद्ध प्रेम’। ओ.के? यह करने में हमें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। तो ‘सेवा कितनी आसान है’ यह जान गये हम लोग आज? जान गये? [Yes] तो हम लोग सेवा करेंगे? [Yes] ‘वह’ क़बूल कर लेगा क्या लेकिन? [हाँ] Surety नहीं है देखो...‘हाँ’ ज़ोर से नहीं आयी। [हाँ] ‘वह’ मान लेगा? [Yes], क़बूल कर लेगा? [Yes] ‘वह’ स्वीकार करेगा? [Yes].... मुझे नहीं लगता [हमें लगता है]....आर यु श्युअर? [Yes].... [नक्की] हाँ....क्या word आना चाहिए?.... [नक्की]
नक्की? [नक्की]
नक्की? [नक्की]
नक्की? [नक्की]
So आज से ऐसी सेवा शुरू की जाये। बड़े ज़ोर से, बड़े प्यार से....ओ.के.? [Yes DAD] जरूर? [Yes]। क्योंकि मैं, मेरे माँ की तस्वीर हो या खुद माँ सामने खडी हो....उसकी सेवा ऐसा ही करता हूँ।
दत्तगुरु की तस्वीर मेरे साथ है, मेरे साथ खाना खाती है। ओ.के.? तो हमें जानना चाहिये कि अगर ये, जो हमें बता रहा है, वह खुद कर रहा है, तो हमें डरने की ज़रूरत नहीं हैं। शुअर? [Sure]
ऑल द बेस्ट,
लव यु ऑल, [Love You DAD]
लव यु ऑल, [Love You DAD]
लव यु ऑल, [Love You DAD]
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥