Sadguru Shree Aniruddha's Pitruvachan - 24th January 2019
॥ हरि ॐ ॥ श्रीराम ॥ अंबज्ञ॥ नाथसंविध् नाथसंविध् नाथसंविध्
जीवन में किसी को यह चाहिए, किसी को वह चाहिए, एक ही इन्सान के जीवन में, सुबह में यह चाहिए, तो दोपहर में दूसरा कुछ चाहिए, शाम को तीसरी चीज़ चाहिए, रात को चौथी चाहिए, सपने में पाँचवी चीज़। Right? चलते ही रहता है। उसमें कोई बुराई नहीं हैं, it happens. होता है। लेकिन अभी समझो, हम लोग कोई एक कॉम्प्युटर लेकर, लॅपटॉप लेकर या पेपर और पेन लेकर काऊंट करने बैठ जायें कि जितना याद है मुझे - मैं क्या-क्या चाहता था? मला काय काय हवं होतं? Whatever I wanted? Whatever I desired? अगर हम लोग, ये सभी चीजें लिखने के लिए बैठें, काऊंट करने के लिए बैठें, तो कितना काऊंट होगा? दस साल के लिए ही सोचिए, तो भी 365 X 10 यानी कितने हुए? 3650 दिन। हर दिन के 10 - कितने हो गए? 36500 इतने desires हो जाते हैं कम से कम; और ये हम बड़ी चीज़ों की याद रखते हैं। छोटी-छोटी चीजें, जैसे, घर से बाहर निकले....अभी तो ओला-उबेर हैं, हम घर मँगाते हैं that is different thing. लेकिन घर से बाहर निकले, यूँ तुरंत मैं गया, खाली बस आ गयी, मैं चढ़ गया, बस में आराम से बैठ गया। या फिर कार में बैठा, लेट हो गया है, तो एक भी सिग्नल ना लगें, मैं तुरंत जाकर पहुँचूँ, ऐसी छोटी-छोटी-छोटी इच्छाएँ तो कितनी होती हैं! इसका मतलब क्या है? हमारी पूरी जिंदगी ही, पूरा जीवन ही सिर्फ इन्हीं चीजों से भरा हुआ होता है। मुझे यह चाहिए, बस ऐसा ही चाहिए, उतना ही चाहिए, इससे कम नहीं, इससे ज़्यादा नहीं, बस्स। Then we go on dreaming, हम लोग सपने देखते हैं| सपने देखना कोई बुरी बात नहीं, अच्छी बात है। लेकिन सपनें अगर सच के साथ, वास्तविकता के साथ, fact के साथ जुड़े हुए ना हों, तो flop हो जाते हैं, Right? तो जिंदगी क्या है हमारी? हमारी इच्छाएँ, our desires, our expectations, हमारी अपेक्षाएँ और ये पूरी हो गयीं, तो एक क्षणिक आनंद और ना पूरी हुई तो जीवनभर की frustration, निराशा। जितनी भी हमारी कामनाएँ पूरी हो गयीं, उन्हें हम लोग याद नहीं रखते। जो पूरी नहीं हुईं, वे बराबर याद आती रहती हैं, बार-बार। ऐसा क्यों होता है? हम लोग Book-keeping करने बैठे हैं - जमा कितना हो गया? खर्च कितना हो गया? लिखने बैठे हैं, तो बार बार यही विचार आते रहता है -यह नहीं पूरा हुआ, यह इच्छा नहीं पूरी हुई, यह नहीं मिला, वह नहीं मिला, ऐसा नहीं मिला। यह ऐसा क्यों होता है? सभी का होता है। Nobody is exception, no one is exception. इसे अपवाद नहीं होता। ये क्यों होता है? क्योंकि यह एक जो मन नाम की चीज़ है, इसे हम पहचान नहीं सकते। खुद का ही मन है, खुद नहीं पहचान सकते। कोई इन्सान अगर कहता है कि मेरा मन ऐसा-ऐसा है....नहीं! एक क्षण में पल्टी मारता है मन....एक सेकंड़ में। देखिए, जहाँ नहीं देखो ऐसा बताया जाता है, वहाँ अपनेआप नज़रें चली जाती हैं, राईट?
मैंने एक किस्सा सुना था कि एक लड़का अपना कॉलेज का रिझल्ट लेकर पिताजी के पास गया। वे बोले, क्या! क्या मार्क्स लाये तुमने? बहोत कम मार्क्स लाया है। ये देख हमारे पड़ोसी की बेटी है, उसको देख जरा। कैसी Highest आयी है, सब जगह उसे मेडल्स मिलते हैं और तू Fail होता है, उसे देख। डॅड, क्या करूँ? उसे देखते-देखते ही तो यह हालत हो गयी। This is how our life is. बाप क्या बता रहा है? बेटा क्या बता रहा है? चीज़ तो देखने की ही है। एक अलग ढ़ंग से देख रहा है, दूसरा दूसरे ढ़ंग से देख रहा है। यह मन है। यह मन बाप की भूमिका में हैं, तो अलग रूप से देखता है। बेटा है, तब अलग रूप से देखता है।
इसलिए मन को ढूँढ़ना नहीं चाहिए, ढूँढ़ते रहना भी नहीं चाहिए। उसके आगे चलकर लोग बोलते हैं, मन पर कन्ट्रोल करो, मन काबू में रखो। अरे बॉस, किसने काबू किया है मन पर? जिसने काबू किया, वे संत हो गए, हम साधारण इन्सान हैं।
हमें मन को काबू में रखने की कोशिश तो ज़रूर करनी चाहिए, लेकिन उसके पीछे नहीं दौड़ना चाहिए। मन के पीछे भी दौड़ना नहीं, क्योंकि मन घसीटते लेके जाएगा; और मन को कन्ट्रोल करने के लिए उसके पीछे दौड़ना भी उतनी ही खराब बात है, उतनी ही बेकार बात है। तो क्या करें? मन को छोड़ दें? मन तो है। कहाँ है? दिखाओ मुझे मन कहाँ है? मन की qualities बताओ। नहीं बता सकते। कोई खुद का स्वभाव भी नहीं बता सकता ठीक तरह से। हमारी रिऍक्शन आज एक तरह की होती है, कल अलग तरह की होती है, अपनेआप। कभी-कभी तो देखो, सबेरे उठने के बाद अपनेआप मूड़ खराब होता है। कभी-कभी सुबह उठने के बाद मूड़ बहुत ही अच्छा रहता है। क्यों? मालूम नहीं पड़ता। अपनेआप मूड़ डिप्रेशन में जाता है, मूड़ अपनेआप ठीक होता है। जानते नहीं, मन क्या है?
कोई बोलता है कि मन is thoughts. मन विचार है। नहीं! मन में विचार आते हैं। कितनी बार अपने जीवन में झांककर देखिए, कभी सोचा भी नहीं था ऐसे विचार मन में आते हैं। पूरे दिन में सोचा नहीं था, पूरे साल में सोचा नहीं था ऐसा विचार आ जाता है अपने आप। कहाँ से आता है, कैसे आता है? कैसे आता है उसे ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं है। तो फिर, बापू, हम क्या करें? यह भी नहीं करना है, वह भी नहीं करना है, कुछ भी नहीं करना है, तो क्या हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाएँ? नहीं, ऐसी बात बिलकुल नहीं।
मैंने शुरुआत कहाँ से की थी? मुझे यह चाहिए, मुझे वह चाहिए, मुझे वह भी चाहिए। मन को कन्ट्रोल में रखने के लिए सिर्फ़ दो चीज़ों की आवश्यकता होती है। कन्ट्रोल में यानि सही रास्ते पर रखने के लिए। पहली चीज है कि हमारे मन में जो करने की, जो पाने की इच्छा होती है, वह कितनी सही है यह देखना। उसके बाद, उसे पाने का सही मार्ग कौनसा है, यह देखना। बाद में तीसरी, यह सही बात सीखना। चार, सही बात की प्रॅक्टीस करना। कोई भी चीज प्रॅक्टीस के सिवाय नहीं आती इन्सान को....कौन सी भी नहीं; और प्रॅक्टीस करने का field मन ही होता है। राईट?
भारत में 90% लोगों की एक प्रॉब्लेम है - इंग्लिश पढ़ तो सकते हैं, इंग्लिश में fluently बोल नहीं सकते। क्योंकि हम लोग सोचते हैं मराठी में या हिन्दी में, या गुजराती में और पंजाबी में [यानी अपनी भाषा में] और बोलते हैं अँग्रेजी में, तो बोल कैसे सकोगे fluently? If you want to speak in English, you have to think in English first. That we do not understand. यह कौन करता है? मन करता है। तुम जो करना चाहते हो उसके लिए सही मार्ग क्या है? ये पहले सीखो, ढूँढो । कहाँ ढूँढना है? जग में नहीं ढूँढ़ना है, अपने मन में [ढूँढ़ना है]। यह पहली बात हो गयी। जो चाहिए, वह सही है या नहीं? उसे पाने के लिए सही मार्ग क्या है? सही मार्ग मिला, तो सही मार्ग सीखकर उसकी प्रॅक्ट्रीस करनी चाहिए। तभी वे सही चीजें हमें हासिल हो सकती हैं। यह पहली चीज हो गयी।
दूसरी चीज है - हाथ से जो गलतियाँ होती हैं....हाथ से या मुँह से या पैर से या किससे भी जब गलतियाँ होती हैं, उसके पीछे मातम मनाना बन्द कर दो। ये गलती हो गयी, वह गलती हो गई....खुद के बारे में, husband-wife एक दूसरे के बारे में, अपने बच्चों के बारे में। बच्चे की गलती हुई, आपने उसपर गुस्सा किया, दो झपाटे मारे, ठीक है। लेकिन हमेशा उस गलती को लेकर बैठ गए, तो बच्चे कभी नहीं सुधरेंगे। माँ-बाप बच्चों को सुधारना चाहते हैं, बच्चे माँ-बाप को सुधारना चाहते हैं। दोनों के मन में एक ही विचार है। माँ-बाप सोचेंगे कि क्या नयी जनरेशन है! बच्चे सोचेंगे की क्या पुरानी जनरेशन है! दोनों भी सुधारना ही चाहते हैं। कौन सही है, कौन गलत है? दोनों भी अपनी जगह पर सही हो सकते हैं, गलत हो सकते हैं....इन्सान हैं। लेकिन गलती को लेकर बैठना, Guilt को लेकर बैठना, अपराधीपन की भावना को लेकर बैठना, यह हम लोग मन के गुलाम बनने का चिन्ह है। Why do good men suffer? यह बहुत बड़ा book है Kant का । हम लोग देखते हैं, हमेशा अच्छे लोगों के जीवन में ही ज्यादा प्रॉब्लेम्स आते हैं। अच्छे लोग यह किसने define किया? अच्छे का मतलब क्या है? हर पल अच्छाई की definition बदलती रहती है। बच्चे का जनम हुआ, आनंद किया। बच्चे का जनम हुआ, अच्छा ही है; लेकिन बच्चे को सड़क पर फेंक दिया, क्या यह अच्छा है? नहीं है, यह जान लें। हम लोग ग्रंथ में भी पढते हैं - बहुत बार लोग बोलते हैं, हमें मालूम ही नहीं पड़ा कि यह गलत है। बिलकुल बेकार की बात। जिसको अन्न और टट्टी में फ़र्क़ समजता है, वह जानता है कि सही क्या है और गलत क्या है! लेकिन हम लोग देखना नहीं चाहते। जो हमारी चाहत है, उसके पीछे दौड़ते-दौड़ते हम गलत चीजों के लिए सारे evidences तैयार करते हैं कि ये सही हैं। एक लड़की के प्यार में क्या लग गए (या लडकी लडके के पीछे), तो उसके सारे अवगुण या दुर्गुण भी सद्गुण लगने लगते हैं। वहीं दो साल के बाद उल्टा होता है - सद्गुण भी दुर्गुण लगने लगते हैं। क्यों? तुम वही हो, वह person भी वही है। तुम्हारा मन भी वही है। तो क्या मन बदल गया? हाँ, बदल गया। मन बदलता ही रहता है हर पल; और मन हमारे पूरे अस्तित्व पर कैसे पकड बनाए रखता है? हमें Guilt देकर, न्यूनगंड देकर, Inferiority Complex देकर। तो उसका कभी भी स्वीकार नहीं करना। गलती हो गई, yes मान्य है। आगे से सुधरने की कोशिश करूँगा....जरूर करूँगा। मुझे आधार देनेवाला भगवान है। मेरा भगवान है - मेरे पीछे है, मेरे आगे है, मेरे दाएँ बाजू में है, मेरे बाएँ बाजू में है, मेरे अंदर भी है....सबाह्य अभ्यंतरी तू एक दत्त। अभाग्यासी न कळे कैसी ही मात।
यह भगवान जो है, मेरे साथ है - जेथे जातो तेथे तू माझा सांगाती। चालवीसी हाती धरूनिया| क्या कहते हैं तुकाराम महाराज? जहाँ जहाँ मैं जाता हूँ, तू मेरे साथ ही होता है। अगर यह तुकाराम महाराज का वचन सही है, तो इसका मतलब है, जब मैं गलती कर रहा था तब भी मेरा भगवान मेरे साथ था। जिस-जिस पथ पर भक्त साई का, वहाँ खड़ा है साई। मैंने गलती की, मैं गटर में उतरा, गटर में जाकर पड़ा। ओ. के.! जान गया, बाहर आया, स्नान किया, साफ हो गया। गटर में भी साई मेरे साथ था यह भावना होनी चाहिए। जब हम हमारे भगवान को अपने मन में साथ रखने की कोशिश करते हैं, तब मन हम पर हावी नहीं हो सकता, मन हमें गुलाम नहीं बना सकता। जब हम मन के गुलाम नहीं बनते, तभी हमारी जिंदगी यशस्वी होती है, यशपूर्ण होती है। जब तक हम मन के गुलाम हैं, तब तक यश यश नहीं होता, तब यश भी दुख ही लाता है। Nothing succeeds like success. यश जैसा यशस्वी कुछ भी नहीं हैं। उसी जश को पाने के लिए, उसी यश को पाने के लिए हमारा मन यशवंत होना आवश्यक है। मन यशवंत तभी होता है, जब हमारे मन में वह रहता है। हर पल उसे याद करने की कोई आवश्यकता नहीं। जितनी बार कर सको, करते रहो; लेकिन जब गलती करके उससे पछतावा होता है, तब ज़रूर करो।
इतना प्यार करना उससे, कि भगवान को आप बोल सकोगे, हे भगवान! मैंने ज़रूर गलती की, जो सज़ा देना चाहता है, जरूर दे दे, लेकिन ज़िम्मेदारी तेरी है। Yes....Your God will be ready to accept it. तुम्हारा भगवान हमेशा हाथ फैलाकर खड़ा रहता है, आओ मेरे बच्चों! तुम्हारी सारी की सारी गलतियाँ मुझे दे दो, तुम्हारे सारे पाप मुझे दे दो। मैं उन्हें निगल जाने को तैयार हूँ; लेकिन....प्यार से दे दो, yes।
मन अपने काबू में रखने के लिए योगा है, जरूर करो; कोई problem नहीं। सही शास्त्र है। सबसे बड़कर क्या है? भगवान है, भगवान मेरा है, भगवान मुझसे प्यार करता है, भगवान को मुझपर भरोसा है - that is most important। तुम्हें भगवान पर भरोसा है कि नहीं doesn't matter much. ये जानना की भगवान का मुझपर पूरा भरोसा है - that is most important; ये सबसे जरूरी है। That will control your mind. यह तुम्हारे मन को control करेगा। So क्या जानना चाहिए? बार-बार अपने मन को क्या बताना चाहिए? मेरे भगवान को मुझपर पूरा भरोसा है। क्यों? What is the evidence? अरे, मुझे मनुष्य जन्म दिया है, मुझे गधा बनाकर नहीं लाया, Right? This evidence is sufficient कि मैं मनुष्य बनने के लिए लायक हूँ इतना भरोसा भगवान को मुझपर है। That's sufficient evidence कि भगवान का मुझपर पूरा विश्वास है। तो काहे को रोना भाई? रोयेंगे आज से? [नहीं] निराश होंगे? [नहीं] खुद को पीटते रहेंगे? [नहीं] कोसते रहेंगे? [नहीं] नक्की? [नक्की] नक्की? [नक्की] नक्की? [नक्की] Love you all, love you much. ॥ हरि ॐ ॥ श्रीराम ॥ अंबज्ञ ॥ [नाथसंविध्]
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥