सद्गुरु महिमा - भाग १
सद्गुरु श्री अनिरुद्धने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘सद्गुरु महिमा’ इस बारे में बताया।
साईनाथजी की महिमा हेमाडपंत लिख रहे हैं, हम लोग देख रहे हैं। हेमाडपंतजी ने हमें सद्गुरु क्या था, क्या होता है, कैसे होता है यह खुद की आँखों से देखा था, महसूस किया था और पूरी तरह से जान लिया था और सिर्फ जाना नहीं बल्कि जानने के साथ-साथ खुद को निछावर कर दिया था उनके चरणों पर। ऐसे हेमाडपंतजी लिख रहे हैं, हमें बता रहे हैं, सारे जग को बता रहे हैं यह सद्गुरु क्या होता हैं।

तो देखिये यहाँ क्या कहते हैं हेमाडपंतजी, यहां जो हम क्रियायें, जिन क्रियायों का वो जिक्र कर रहे हैं हेमाडपंतजी, यह एक के बाद एक करते हैं सभी लोग। यह एक साथ करना यह चीज़ हेमाडपंतजी बता रहे हैं कि जब वो दर्शन के लिये साईबाबा के सामने जाकर खड़े रहते थे, तब क्या-क्या होता था? अन्य लोगों के जैसे वो पहले नमस्कार करते थे, आरती करते थे, पूजा करते थे, ये सब कुछ तो वो करते ही थे। लेकिन गुरु के साथ हर एक भक्त का व्यवहार कैसा होता है, पूजन कैसा होता है, गुरुभक्ति कैसी होती है यह सब कुछ हेमाडपंतजी हमें बता रहे हैं और ये जो प्रथम पूजन की क्रिया है, भक्ति की क्रिया हमें बता रहे हैं, ये क्रियायें बहुत महत्वपूर्ण हैं और बाद में उन सब का महत्त्व भी बता रहे हैं।
‘करावे मस्तके अभिवंदन।’ जो लिख रहे हैं, उनके लिये बता रहा हूँ। नंबर एक क्या बोल रहे हैं, ‘करावे मस्तके अभिवंदन’, सिर्फ वंदन नहीं कह रहे हैं ‘अभिवंदन।’ ‘करावे मस्तके अभिवंदने।’ मस्तक से वंदन करना यानी अपना सर जो है, सद्गुरु के चरणों पर रखना, सिर्फ इतना ही मतलब हुआ। हेमाडपंतजी यहां कह रहे हैं- ‘अभिवंदन’, इसका मतलब और कुछ है। यानी पहला अर्थ तो है ही क्रिया का, इस क्रिया का कि अपना मस्तक जो है, सद््गुरु के चरणों पर रखना है, राईट ये नमस्कार कृति का पहला अंग है।
यह अभिवंदन यानी क्या? आजकल तो हम अभिवंदन शब्द का इस्तेमाल बहुत तरीके से कहते हैं। जो मार्चपास के लिये भी अभिवंदना कहते हैं, सॅल्यूट को भी अभिवंदना कहते हैं। ये अभिवंदना का संस्कृत में अर्थ बहोत अलग है। अभिवंदना का मतलब होता है, अभिवंदन यानी जो वंदन पूर्ण है, जो वंदन पूर्ण है वह अभिवंदन है। जो वंदन, वंदन यानी जो भी चीज़ जहां ‘अभि’ लगती है, ‘अभि’ प्रत्यय जब लगता है, उसका मतलब क्या है? जो पूर्ण है, इतना ही नहीं जो उचित है, पूर्ण है, उचित है, इतना ही नहीं, जो आज पूर्ण है वैसा और जैसा उचित है आज वैसे कल भी रहेगा, परसों भी रहेगा, नरसों भी रहेगा, एक साल के बात भी रहेगा, वो ‘अभि’ है।
‘सद्गुरु-महिमा’ इस बारे में हमारेसद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll