रिक्रिएशनल अॅक्टिव्हिटी (Recreational Activity) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने १४ जनवरी २०१६ के पितृवचनम् में ‘रिक्रिएशनल अॅक्टिव्हिटी' के बारे में बताया।

देखिये, पिंगला नाडी क्या है सौर यानी सूरज की नाडी है और इडा ये क्या है, चंद्र नाडी है। अब दिन भर हम लोग काम करते हैं और रात को सोते हैं, राईट! रात का सोना आवश्यक है। अगर चार रात नही सोयेंगे तो पाचवीं रात हम लोग कुछ नहीं कर सकेंगे। यानी दोनों का अस्तित्व आवश्यक है। सूरज का और चाँद का, रात का और दिन का। काम करने का और सोने का।
इसलिये हमें जानना चाहियेो कि इडा जो है, यह बहुत आवश्यक होती है। कुछ लोग मै ऐसे देखता हूं कि वो जानते ही नहीं कि ये इडा क्या है? ये मनोरंजन क्या होता है? मनोरंजन यानी सिर्फ एन्टर्टेंमेंट नही। एक ऐसी एन्टर्टेंमेंट है, जो मनोरंजनात्मक श्रमपरिहार के रूप में होनी चाहिये। वो भी कैसी, तो रिक्रिएशनल, उससे भी आगे हमें ऐसी ताकद मिले कि जिससे हम और अधिक कार्य करने के लिये सक्षम हो जाए।
यानी टाईम पास करना ये रिक्रिएशनल ऍक्टिविटी नहीं हो सकती। राईट! एक ही पिक्चर सौ बार देखना, ये रिक्रिएशनल ऍक्टिविटी नहीं हो सकती। पूरा दिन वो इडियट बॉक्स के सामने बैठकर, टी.व्ही के सामने बैठकर सिरियल्स, सिरियल्स बुरा कुछ नहीं है सिरियल देखने में, लेकिन सिरियल्स ही देखते रहना, पिक्चर्स ही देखते रहना, न्युज देखते रहना या डिस्कव्हरी देखते रहना, ये रिक्रिएशन नहीं है। इससे नवनिर्मिति नहीं है।
रिक्रिएशन का दूसरा भी अर्थ है, नवनिर्मिति। रिक्रिएशन! क्रिएशन याने निर्मिति; पुनर्निर्मिति, नवनिर्मिति। यानी हमारा विश्राम जो है, हमारा जो श्रमपरिहार है, वो मनोरंजनात्मक होने के साथ साथ हमारी बुद्धि को फ्रेश करनेवाला चाहिये, हमारे बदन को फ्रेश करनेवाला चाहिये, हमारे मन को भी फ्रेश करनेवाला चाहिये।
इसलिये हमें जानना चाहिये कि भाई पहले इडा नाडी की आवश्यकता है, पिंगला की भी आवशयकता है। हमें काम करने की आवश्यकता है, काम करते रहने की आवश्यकता है और विश्राम करने की भी आवश्यकता है। लेकिन विश्राम करने का ढंग कैसे होना चाहिये कि वो हमारे लिये सुखकारक हो, आनंददायी हो, आरामदायी हो; सुखकारक भी हो, आनंददायी भी हो, और विश्राम देनेवाला भी हो, सुखकारक भी हो, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।