राधाजी शुद्ध भाव हैं (Radhaji is shuddha bhaav) - Aniruddha Bapu
राधाजी शुद्ध भाव हैं (Radhaji is shuddha bhaav) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘राधाजी शुद्ध भाव हैं’ इस बारे में बताया।
हम उपासना करते हैं, साधना करते रहते हैं, आराधना करते रहते हैं, पूजन करते हैं, अर्चन करते हैं। अपने अपने धर्म, पंथ, प्रदेश, रीतिरिवाज के अनुसार अलग अलग तरीके से कर सकते हैं। कोई प्रॉब्लेम नहीं। लेकिन सबसे आवश्यक बात यह होती है कि भगवान के जिस नाम या रुप की उपासना मैं करता हूं वह उपासना मुझ से सही तरीके से होनी चाहिए। सही तरीके से इसका अर्थ यह नहीं है कि मंत्रों का उच्चारण सही तरिके से ही हो। ऐसा नही। मंत्र सही तरीके से उच्चारित कर रहे हो तो अच्छी बात है। कोई बुरी बात नहीं है। अगर मंत्र उच्चारण में कोई गलती भी हो जाती है तो भी कोई फरक नही पडता। लेकिन आपका जो भाव होता है, वह गलत नही होना चाहिए। कम से कम उपासना के वक्त तो मेरा शुद्ध भाव रहना चाहिए। और यह शुद्ध भाव ही राधाजी स्वरूप है। भगवती राधाजी ये शुद्ध भाव हैं।
भगवान विष्णु, भगवान कृष्ण ये मूल भाव हैं। शुद्ध भाव के पहले मूल भाव होता है। अब इस में अंतर क्या है? भाव का शुद्ध और अशुद्ध यह द्वन्द्व ही जहॉ उपस्थित नहीं है ऐसी श्रीकृष्ण की स्थिति है। राधाजी शुद्ध भाव हैं, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
शुद्ध भाव यह मूल भाव से उत्पन्न होता है (Shuddha Bhaav originates from the Mool Bhaav) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘शुद्ध भाव यह मूल भाव से उत्पन्न होता है’ इस बारे में बताया।
जहॉ रात नही वहॉ दिन भी नहीं। जहॉ रात है वहॉ दिन है। शुद्ध और अशुद्ध हम कब तय कर सकते हैं? जब शुद्ध है तभी हम अशुद्ध कह सकते हैं। जब किसी वस्तु को शुद्ध कहा जाये तो किसी वस्तु को अशुद्ध कह सकते है। जहॉ कृष्ण का मूल भाव है वहॉ सब कुछ शुद्ध ही है। और उसमें से जो शुद्ध भाव प्रगट होता है वह है राधाजी। लेकिन देखिए शुद्ध भाव प्रगट हुआ इस का मतलब है कि उसके साथ साथ कहीं अशुद्ध भाव के लिए भी कहीं जगह छोड दी है और यह अशुद्ध भाव ही है अविद्या।
हमे यह जानना बहुत आवश्यक है, अविद्या भाव अशुद्ध भाव कहॉ से उत्पन्न होता है? शुद्ध भाव मूल भाव से उत्पन्न होता है। मूल भाव क्या है? आनंद-स्वरूप है। आनंद स्वरूप से शुद्ध भाव उत्पन्न होता है और तभी उसके साथ साथ आसक्ति उत्पन्न होती है। आसक्ति ही बेसिकली अशुद्ध भाव है। सारे अशुद्ध का मूल कारण यह आसक्ति ही है। प्रेम के साथ साथ ये आसक्ति का जन्म हुआ है। इसे ही अविद्या माना जाता है। इसी अविद्या को ख्रिश्चन धर्मग्रंथों में डेवील कहा गया है। यह आसक्ति यही डेवील यानी शैतान है। इस अशुद्ध भाव का ही रुपक कंस है। कंस यश अशुद्ध भाव है, जो कृष्ण भगवान को मारना चाहता है। कंस ही हमारे मन का अशुद्ध भाव है।
कृष्ण भगवान तो अद्वैती याने द्वैत के परे है। ना शुद्धता है ना अशुद्धता है, बस मूल स्थिति है। वहीं, राधाजी शुद्ध स्थिति है। राधाजी शुद्ध स्थिति है क्योंकि मूल स्वरूप से अभिन्न हैं, वे परम शुद्ध हैं। ‘शुद्ध भाव यह मूल भाव से उत्पन्न होता है’ इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
मूल भाव और शुद्ध भाव के बीच का नाता (The relation between Mool bhaav and Shuddha bhaav) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘मूल भाव और शुद्ध भाव के बीच का नाता क्या है’ इस बारे में बताया।
परमपूज्य अनिरुद्ध बापू ने मॉ के दूध का एक आसान उदाहरण देकर अपने मित्रों को इस बारे में समझाया। हर मॉ का दूध उसके बच्चे के लिए एकदम सुरक्षित शुद्ध एवं क्वालिटीयुक्त रहता है। अपने बच्चे के लिए best और आवश्यक रहनेवाला सब कुछ उसमें रहता है। गाय का दूध शुद्ध होता है, लेकिन वह उसके बछडे के लिए best होता है। यही अंतर है, मूल भाव और शुद्ध भाव में।
राधाजी जो हैं, वह शुद्ध भाव हैं और कृष्ण भगवान मूल भाव हैं। जो प्रत्यक्ष तत्व / मूल तत्व (direct) है वह कृष्ण भगवान है और भगवती राधाजी अप्रत्यक्ष तत्व / शुद्ध तत्व (indirect) हैं। भगवान के साथ direct contact ना होने के कारण हमें अप्रत्यक्ष रूप का स्वीकार करना पडता है। भगवान विषणु, कृष्ण कन्हैया जो हैं, उन्हीं का मूल स्वरूप विश्व-निर्माण एवं संचालन प्रक्रिया को कार्यान्वित करने के लिए जो बनता है, वह भगवती राधाजी का स्वरूप होता है। यह स्वरूप हमारे लिए हानिकारक नहीं है, बल्कि समझने के लिए सरल है। राधा तत्व मानव से बहुत ही नजदिकी तत्व है। मानव उसे पहचान सकते हैं और भगवती राधाजी को पहचाने के बाद ही कृष्ण भगवान को पहचान सकते हैं। इसीलिए कृष्ण भगवान यह मूल स्वरूप और राधाजी यह शुद्ध भाव है। मूल भाव भी शुद्ध है और शुद्ध भाव भी मूल है। लेकिन मानव को चाहिए कि वह पहले राधाजी को, शुद्ध भाव को स्वीकार कर ले। राधाजी का भाव स्वीकारने के बाद विष्णु भाव यानी कृष्ण भाव अपने आप उत्पन्न होने लगता है। मूल भाव और शुद्ध भाव के बीच का नाता क्या है’, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥