पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन – १९ (क्रैं बीज - युद्ध बीज) [Panchamukha-Hanumat-kavacham Explanation – 19 (Kraim Beej - Yuddha Beej) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने १६ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में ‘पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन’ में ‘क्रैं बीज - युद्ध बीज’ के बारे में बताया।
‘क्रैं अस्त्राय फट् इति दिग्बंधः’। - क्रैं बीज जो है इसे युद्ध बीज कहते हैं। क्या कहते हैं? युद्ध बीज। क्रैं ये युद्ध बीज है। हमारे मन में जो युद्ध चलता रहता है, खुद के साथ ही, हमारे घर में जो युद्ध चलता है, मिया बीवी के बीच में, माँ बाप के बीच में, माँ बेटे बेटी के बीच में, पिता पुत्र के बीच में और अपने पडोसियों के साथ या अपने ऑफिस में या बाहर जो भी, या दोनों राष्ट्रों के बीच में, इन सारे युद्धों का बीज क्या है, ‘क्रैं’ है।
तो ये युद्ध बीज है। लेकिन किसी भी युद्ध में जो सच्चे श्रद्धावान हैं, किसी भी प्रकार के युद्ध में जो जो सच्चे श्रद्धावान हैं, उनका संरक्षण करनेवाला ये बीज है। तो दाशराज्ञ युद्ध ये वेदों का एक युद्ध है, वेदों में दिया हुआ, वर्णन किया हुआ। वैसे इंद्र-वृत्रासुर युद्ध, वो तो आप लोगों ने पढा होगा, मातृवात्सल्य उपनिषद् में, इंद्र और वृत्रासुर का युद्ध।
वृत्रासुर का जब पहली बार जन्म हुआ और जो पहला इंद्र-वृत्रासुर युद्ध हुआ, उस युद्ध के समय माँ चण्डिका के मुँह से जो आशिर्वाद निकला इंद्र के लिये, इंद्र को राघवेंद्र बनाने के लिये, इंद्राग्नि बनाने के लिये जो उच्चार निकला, वो था ‘क्रैं’। और इसी कारण ये युद्ध भी जो हुआ सिर्फ किसी को जय देने के लिये? जो पवित्र है, जो माँ का है, जो भक्तिमान है, जो श्रद्धावान है, जो अच्छा बनना चाहता है। शायद वो अच्छा नहीं हो, लेकीन वो अच्छा बनना चाहता है, सिर्फ उसका संरक्षण हो, इसके लिये इस बीज की उत्पत्ति हुई है, खुद माँ के मुँह से, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
इस तरह ‘क्रैं बीज - युद्ध बीज’ के बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में जो बताया, वह आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥