पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन - १४ (राम दुआरे तुम रखवारे) Panchamukha-Hanumat-kavacham Explanation - 14 (Ram Dware Tum Rakhware) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने १६ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में ‘पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन’ में ‘ राम दुआरे तुम रखवारे ’ इस बारे में बताया।

विराट! मैंने क्या कहा? एक विशेषता क्या है? किस दिशा में, उसको कुछ दिशा का बंधन नहीं है। इस दिशा में बढता जाये या उस दिशा में बढता जाये उसकी, वह स्वेच्छा है, स्व-इच्छा है, इसलिये। ये सबसे क्या है? एकदम सेफ है। क्योंकि अगर हमारा बल गलत दिशा में बढ जाये, जो आगे जाकर हमें नुकसान कर सकता है, तो क्या होगा? प्रॉब्लेम होगा।
आपका मनःसामर्थ्य बढाना है और समझो, उनका मन का सामर्थ्य ऐसा बढ गया कि आप कुछ भी करने लगे, तो आप क्या बन जाओगे, रावण बन जाओगे। अच्छा होगा? नहीं। तो इतनी मर्यादा में रखना चाहिये कि जहां आप रावण नहीं बन सकते। उस ताकद का गलत इस्तेमाल नहीं कर सकते, वो क्या है, विराटतत्त्व है।
समझे? तो ये विराटता हम लोगों ने देख ली। ये विराटता हमारे लिये क्या बनके आती है? वरदान बनके आती है। इस सृष्टि में किसी भी इन्सान को, चाहे वह सामान्य भक्त हो, चाहे श्रेष्ठ तपस्वी हो, जो वरदान आता है, वो वरदान अगर शुद्ध भक्ति के लिये आया हो, या सिर्फ तपश्चर्या के लिये आया हो, तो उसमें फरक रहता है, अंतर रहता है। जो शुद्ध भक्ति के कारण वरदान आता है, वो हनुमानजी का अंश होता है।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
ये आज्ञा यानी क्या है? वरदान है। ये जो वरदान राम के द्वार से आता है, वो हमारे पास कौन लाता है? हनुमानजी। इसलिये वो रामदूत हैं, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥