पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन - १३ (हनुमानजी उचित सामर्थ्य देते हैं) - Panchamukha-Hanumat-kavacham Explanation - 13 (Lord Hanumanji provides sufficient strength) - Aniruddha Bapu
परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने १६ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में ‘पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन’ में ‘हनुमानजी उचित सामर्थ्य देते हैं’ इस बारे में बताया।
ये हनुमानजी जो हैं, ये जब हनुमान के रूप में प्रगट हुए, तब भी, हाल ही में हम लोगों ने अग्रलेखों में पढा, हनुमानजी तो त्रेतायुग में आए थे, लेकिन सत्ययुग में भी थे। किस नाम से थे? ब्रह्मपुच्छ और वृषाकपि। ब्रह्मपुच्छ वृषाकपि ये नाम होते हैं। तो ये सत्ययुग में भी आता है, त्रेता में भी आता है, द्वापार में भी आता है और कलियुग में तो है ही।
तो हमें जानना चाहिये कि विराट हनुमान जो है, वो पंचमुख है। क्या एकमुख विराट नहीं है? एकमुख भी विराट है, लेकिन वो हमारी समझ के बाहर रहता है। ये पंचमुखी हनुमानजी जो हैं, उनका वैराट्य जो है, उनकी विराटता जो है, हमारी आकलनशक्ति के बस की बात होती है। पंचमुखहनुमत्कवच का अर्थ हम लोग जानने की कोशिश कर रहे हैं।
पंचमुखहनुमान विराट् देवता। यानी इस कवच की देवता, इस कवच को दिव्यता देनेवाला, कवच के पठन के बाद सबकुछ देनेवाला कौन है? तो विराट हनुमानजी हैं। वो कैसे हैं? पंचमुख। पंचमुख यानी हर व्यक्ति के पंचप्राण, उसके पंचज्ञानेंद्रिय, उसके पंचकर्मेंद्रिय, उसकी पंचतन्मात्रायें, पंचमहाभूत ये सभी के सभी जो पांच पांच पांच का जो संघ है, उन सभी को क्या करनेवाले हैं? सामर्थ्य देनेवाले हैं। सामर्थ्य कैसा? गलत सामर्थ्य नहीं, ज्यादा सामर्थ्य भी नहीं और कम सामार्थ्य भी नहीं।
आपके लिये जितना सामर्थ्य उचित है, उतना ही देनेवाला विराट होता है, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥