लीला की व्याख्या (Definition Of Leela) - Aniruddha Bapu Pitruvachanam
सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने २० फरवरी २०१४ के पितृवचनम् में ‘लीला की व्याख्या’ के बारे में बताया।
तो ये भगवान की कृपा जो है, दिखाई नहीं पडती, हेल्थ दिखाई नहीं पडती, हेल्थ के असर हम लोग जानते हैं। Proper आरोग्य क्या है, हम महसूस कर सकते हैं। वैसे ही भगवान की कृपा यह महसूस करने की बात होती है। और ये जो कथाओं को हम पढते हैं, ये कथाओं से हम क्या महसूस कर सकते हैं? भगवान की कृपा महसूस कर सकते हैं। इसलिये भक्त क्या कहता है, साई की लीला है। ये साई की लीला है, ये कृष्ण की लीला है, ये श्रीराम जी की लीला है। रामलीला तो हम बरसों से देखते आ रहे हैं, लेकिन अंदर नहीं उतरती।
लीला यानी क्या? लीलया। आसानी से सहजता से जो होता रहता है, सहजता से, उसे लीलाला कहते है। कृपा करनी पडती है। कृपा होती है। लीला होती रहती है, अपने आप होती रहती है। हमें क्या चाहिये? आप बोलेंगे हमे कृपा चाहिये। लेकिन उसने तो लीला दे रखी है। ये जानना सिखो। ये कथाओं को पढने से हम भगवान की लीला जानते हैं। और भगवान की लीला एक बार जान गये तो सारे जीवन की जितने भी गलत प्रिंसिपल्स है, ये तुम्हारे आडे आ रहे हैं, कोई इन्हें ग्रह बोलता है, कोई इन्हें दुष्कर्म बोलता है, कोई इन्हें प्रारब्ध बोलता है, जो भी है, उसके लिये तुम्हे जवाब मिल जाता है।
इसलिये हर कथा में भगवान की, हमें ढूँढते नहीं बैठना चाहिये। अगर ढूँढते बैठोगे कि इसमें क्या प्रिंसिपल है, इसमे क्या प्रिंसिपल है, तो वो क्या होगा? ज्ञानमार्ग होगा। आप अंत तक ढूंढते ही रहोगे। आप प्यार से पढते रहो। अपने जीवन को उसमें खोजते रहो।
लीला की व्याख्या के बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥