Krishna dwells where devotees perform bhajan, poojan: Aniruddha Bapu
सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०६ अक्तूबर २००५ के हिंदी पितृवचनम् में ‘ॐ कृष्णायै नम:’ इस बारे में बताया।
वो स्वयं भक्तिरूपिणी हैं, ये राधा भक्तिरूपिणी हैं और हम लोग जानते हैं कि श्रीमद्भागवत में एक श्लोक है, नारद को भगवान स्वयं श्रीकृष्ण, स्वयं श्रीकृष्ण भगवान कह रहे हैं, ‘मद्भक्ता यत्र गायन्ति, मद्भक्ता यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद।’, मद्भक्ता यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद।’ ‘हे नारद, जहाँ मेरे भक्त भजन-पूजन करते रहते हैं, वहाँ ही मैं निवास करता हूँ।’, ‘नाहम् वसामि वैकुंठे’ कहते हैं, ‘नाहम् वसामि वैकुंठे’, मेरा निवास वैकुंठ में नहीं होता है तो मेरे भक्त, यानी ढोंगी भक्त नहीं, बगुला भक्त नहीं, सच्चे भक्त जो हैं; भक्त वही है जो विभक्त नहीं हुए हैं भगवान से। जो भक्त भगवान से अलग नहीं हुए हैं, वे ही भक्त हैं, जो अलग होते हैं भगवान से, वो भक्त हैं ही नहीं।
ऐसे भक्त जहाँ गाते हैं, गायन-पूजन करते हैं, भजन करते हैं, ‘नाहम् वसामि वैकुंठे, भक्तानाम् हृदये रवौ।’ क्या सुंदर वाक्य है! ‘हृदये रवौ’, अब यहाँ ‘रवौ:’ शब्द जो है ना भाई, ये दो तरीके से हम लोग देख सकते हैं। एक ‘रवी’ यानी सूरज, और दूसरा शब्द ‘रव’ यानी आवाज, ध्वनी और ‘रवौ’ यानी दो आवाज। मैं दिल की धड़कन की जो दो आवाज में उनमें रहता हूँ। किसके? जो भक्त मेरा गायन करते हैं, उनके हृदय की दो आवाज में। आज का सायन्स जानता है कि हृदय के दो साउंड्स होते हैं, फर्स्ट हार्ट साऊंड और सेकंड हार्ट साउंड।
तत्र तिष्ठामि नारद, मद्भक्ता यत्र गायन्ति, नाहम् वसामि वैकुंठे।’ मैं वैकुंठ में रहता हूँ ये बात ग़लत है, मैं भक्तों के हृदय में रहता हूँ, उनके हृदय की हर आवाज में रहता हूँ। यानी हृदय के हर स्पंदन में रहता हूँ और वही मेरा घर है और ऐसे कृष्ण, जब ये बात सामान्य भक्त के लिए कह रहे हैं तो जो उनकी परम भक्त हैं, भक्तिस्वरूपिणी हैं, स्वयं भक्ति है, उस राधा की मुट्ठी में क्यो न रहेंगे भाई, जरूर रहेंगे, इसी लिए उन्हें ‘कृष्णा’ कहा गया है।
ॐ कृष्णायै नम:। ऐसी कृष्णा को मेरा प्रणाम रहे, ऐसी राधा को मेरा प्रणाम रहे, जिनके वश में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं हमेशा रहते आये हैं और रहते रहेंगे ऐसी कृष्णा को मेरा प्रणाम रहे।
‘ॐ कृष्णायै नम:’ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
|| हरि: ॐ || ||श्रीराम || || अंबज्ञ ||
॥ नाथसंविध् ॥