सीआरपीएफ़ के जवान शहीद होने पर ‘जेएनयू’ में जल्लोष

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अप्रैल २०१० को छत्तिसगढ़ के दांतेवाडा ज़िले में माओवादियों ने बुज़दिल हमला किया और इस हमले में ‘सीआरपीएफ़’ के ७६ जवान शहीद हो गये। इस घटना के बाद देशभर में ग़ुस्से की तीव्र लहर दौड़ उठी थी। वहीं, ‘जेएनयू’ में इस हमले के बाद जल्लोष शुरू हुआ था। ‘इंडिया मुर्दाबाद, माओवाद ज़िंदाबाद’ के नारे यहाँ के कुछ छात्र दे रहे थे। माओवादियों को मिली इस क़ामयाबी के जल्लोष के जारी रहते कुछ छात्रों ने उसका विरोध भी किया था। इससे ‘जेएनयू’ का माहौल काफ़ी ग़रम हुआ था। यह घटना यही स्पष्ट करती है कि ‘जेएनयू’ में देशविरोधी प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जा रहा है। देश की सुरक्षा को चुनौती देकर निष्पाप नागरिकों का ख़ून बहानेवाले माओवादी एवं आतंकवादी ‘जेएनयू’ के कुछ छात्र-संगठनों को ‘नायक’ प्रतीत होते हैं। वहीं, देश की सुरक्षा के लिए अपना ख़ून बहानेवाले जवान इन छात्रों को ‘खलनायक’ प्रतीत होते हैं। कुछ साल पहले, पाक़िस्तान से आये कुछ गायकों का गाना ‘जेएनयू’ में प्रस्तुत किया गया था। इस कार्यक्रम में भारतीय लष्कर का मज़ाक उड़ाया जा रहा था। ‘जेएनयू’ के ही पूर्व छात्र रहनेवाले और कारगिल के युद्ध में लड़े हुए भारतीय लष्कर के जवानों ने उसका विरोध किया। तब उन जवानों को इस कार्यक्रम के दौरान ही मारपीट की गयी और उन दो जवानों को लंबे अरसे तक अस्पताल में इलाज़ के लिए भर्ती होना पड़ा था, यह जानकारी भी प्रकाशित हुई थी। संसद में भी यह प्रश्न उपस्थित किया गया था।