चीन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय आक्रामक - 2
चीन की ‘बीआरआय’ योजना में मानव अधिकारों का उल्लंघन – अंतरराष्ट्रीय अभ्यासगुट का आरोप
लंदन/बीजिंग – चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना ‘बेल्ट ऐण्ड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआय) में मानव अधिकारों का बड़ी मात्रा में उल्लंघन होने का आरोप अंतरराष्ट्रीय अभ्यासगुट ने लगाया है। बीते सात वर्षों के दौरान चीन की हुकूमत ने विश्वभर में शुरू किए प्रकल्पों से मानव अधिकारों का उल्लंघन करने के ६७९ मामले सामने आने की जानकारी लंदन स्थिति अभ्यासगुट ने प्रदान की है। कुछ महीने पहले चीन की महत्वाकांक्षी योजना के आर्थिक कारोबारों की सच्चाई सामने रखनेवाला ‘हाऊ चायना लेंडस्’ नामक एक रपट जारी हुई थी।
ब्रिटेन के ‘बिज़नेस ऐण्ड ह्युमन राईटस् रिसोर्स सेंटर’ (बीएचआरआरसी) नामक अभ्यासगुट ने ‘बेल्ट ऐण्ड रोड इनिशिएटिव’ की काली बाजू दिखानेवाली रपट जारी की है। ‘गोर्इंग आऊट रिस्पॉन्सिबलीः द ह्युमन राईटस् इम्पैक्ट ऑफ चायनाज् ग्लोबल इनवेस्टमेंटस्’ नामक इस रपट में चीन की १०० से अधिक कंपनियों द्वारा विश्व के अलग अलग हिस्सों में चलाए जा रहे प्रकल्पों का अध्ययन किया गया है। एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में इन प्रकल्पों में मानव अधिकारों का सबसे अधिक उल्लंघन हो रहा है और ऐसे लगभग २६९ मामले सामने आने की बात ‘बीएचआरआरसी’ ने कही है।
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चीन के अलावा अन्य देशों के लिए ताइवान यह एक राष्ट्र ही है –फ्रेंच अखबार ‘ले फिगारो’ की ची
पैरिस/ताईपे/व्हिल्निअस – सिर्फ चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत ही ताइवान उनका ही प्रांत होने की सोच रखती है। अन्य सारे विश्व के लिए ताइवान एक राष्ट्र ही है, इन शब्दों में फ्रान्स के शीर्ष अखबार ‘ले फिगारो’ ने चीन को फटकार लगाई है। लिथुआनिया ने ताइवान को स्वतंत्र राजनीतिक दफ्तर शुरू करने के लिए प्रदान की हुई मंजूरी से चीन को बड़ी मिर्च लगी है और इस मुद्दे पर चीन ने लिथुआनिया से अपने राजदूत को वापिस बुलाया है। इससे संबंधित खबर प्रसिद्ध करते समय फ्रेंच अखबार ने ताइवान में लोकतंत्र के अनुसार चुनी हुई सरकार बनी है, इस बात की याद भी दिलाई। लिथुआनिया के मुद्दे पर चीनी माध्यम भी आक्रामक हुए हैं और चीन के सरकारी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाईम्स’ लिथुआनिया को सबक सिखाने के लिए चीन अब रशिया से हाथ मिलाएगा, ऐसा धमकाया है।
बीते महीने ताइवान ने पूर्व यूरोप के लिथुआनिया में स्वतंत्र राजनीतिक दफ्तार शुरू करने का ऐलान किया था। खास बात तो यह है कि, यह दफ्तर ‘द ताइवानीज् रिप्रेज़ेटेटिव ऑफिस’ नाम से ही शुरू किया गया है। ताइवान के इस प्रस्ताव को लिथुआनिया ने भी अधिकृत स्तर पर मंजूरी प्रदान की है और ताइवान में अपना राजनीतिक दफ्तर शुरू करने के भी संकेत दिए हैं। यूरोपिय महासंघ के छोटे देशों में से एक लिथुआनिया ने ताइवान को लेकर अपनाई यह नीति चीन की हुकूमत को बेचैन करनेवाली साबित हुई है।
अधिक पढिये : http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/taiwan-is-a-nation-for-all-countries-except-china/ चीन के परमाणु हथियारों में हो रही बढ़ोतरी से अमरीका को चिंता – विदेशमंत्री ब्लिंकन की ‘आसियान’ की बैठक में चेतावनी
वॉशिंग्टन – ‘चीन ने बीते कई दशकों से सिर्फ प्रतिकार करने के उद्देश्य से ही परमाणु अस्त्रों का निर्माण करने की नीति अपनाई थी। लेकिन चीन की हुकूमत अब इस नीति का त्याग करती दिखाई दे रही है। बीते कुई वर्षों से चीन परमाणु हथियारों की संख्या तेज़ी से बढ़ा रहा है’, इन शब्दों में अमरीका के विदेशमंत्री एंथनी ब्लिंकन ने चीन के परमाणु हथियारों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई। ‘आसियान’ के ‘रीजनल फोरम’ की बैठक के दौरान अमरिकी विदेशमंत्री ने यह मुद्दा उठाया, ऐसी जानकारी अमरिकी विदेश विभाग ने साझा की।
अमरीका ने बीते महीने ही चीन विरोधी गुट को मज़बूती प्रदान करने के लिए आग्नेय एशियाई देशों के साथ ताल्लुकात मज़बूत करने की दिशा में गतिविधियाँ शुरू की थीं। बीते महीने ही अमरीका के विदेश विभाग के वरिष्ठ अधिकारी वेंडी शरमन ने आग्नेय एशिया का दौरा किया था। इसके बाद अमरिकी रक्षामंत्री लॉईड ऑस्टिन ने भी आग्नेय एशियाई देशों की यात्रा की थी। इस महीने के शुरू में विदेशमंत्री एंथनी ब्लिंकन ने भी आग्नेय एशियाई देशों से बैठक एवं बातचीत करना शुरू किया है। रीजनल फोरम में किया गया उनका यह बयान उसी का हिस्सा समझा जाता है।
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ब्रिटेन चीन जैसे देश का ‘क्लायंट स्टेट’ ना बने – अमरीका और ब्रिटेन के पूर्व मंत्रियों का इशारा
लंदन/बीजिंग – चीन द्वारा नैसर्गिक साधन संपत्ति एवं ऊर्जा स्रोत पर वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश जारी है और इसे चुनौती देना ज़रूरी है। मौसम के बदलाव जैसे क्षेत्र के अपने उद्देश्य प्राप्त करने की होड़ में ब्रिटेन चीन जैसे खतरनाक देश का ‘क्लायंट स्टेट’ बनकर नहीं रह सकता, ऐसी गंभीर चेतावनी अमरीका और ब्रिटेन के पूर्व मंत्रियों ने दी है। एक ब्रिटीश अखबार में लिखे गए लेख में अमरीका के रॉबर्ट मैक्फार्लेन और ब्रिटेन के लिआम फॉक्स ने चीन के बढ़ते प्रभाव की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
बीते दो वर्षों से चीन और पश्चिमी देशों के बीच अलग अलग मुद्दों पर विवाद हो रहा है और दोनों ओर तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। ‘५ जी’ तकनीक, साउथ चायना सी, हाँगकाँग, उइगरवंशी, जासूसी, सायबर हमले, कोरोना की महामारी जैसे मुद्दों पर पश्चिमी देश चीन की शासक हुकूमत को लक्ष्य कर रहे हैं। यह करने के साथ ही चीन आर्थिक बल पर पश्चिमी देशों में बढ़ा रहे प्रभाव का मुद्दा भी लगातार सामने आ रहा है। अमरीका और यूरोप के कई संवेदनशील क्षेत्र एवं शीर्ष कंपनियों में चीन के निवेश और इसके असर भी सामने आ रहे हैं।
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