अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुडी महत्वपूर्ण ख़बरें - 1

फेडरल रिजर्व के दावे के बाद अमरिकी डॉलर के मूल्य में बढ़ोतरी – लेकिन सोने की किमतें और एशियाई शेअर बाज़ार की गिरावट

अर्थव्यवस्था

वॉशिंग्टन – महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याजदर की बढ़ोतरी कुछ समय तक जारी रखने के संकेत अमरीका की फेडरल रिजर्व ने दिए हैं। इस बयान के बाद अमरिकी डॉलर का मूल्य अन्य मुद्राओं की तुलना में काफी बढ़ा है। एशियाई बाजार में बड़े उछाल के साथ डॉलर २० साल के चरमस्तर पर पहुँचा है। इसका असर अन्य घटकों पर पड़ा है और सोने के साथ एशियाई शेअर बाजार में गिरावट देखी गई। इसी बीच मौजूदा साल की चौथी तिमाही में ब्रिटेन को मंदी से नुकसान पहुँचेगा, ऐसा अनुमान ‘गोल्डमन सैक्स’ वित्तसंस्था ने व्यक्त किया है।

अमरीका के साथ पश्‍चिमी देशों में महंगाई में भारी उछाल आया है। इसे रोकने के लिए अमरीका के साथ अधिकांश सेंट्रल बैंकस्‌ ने ब्याजदर बढ़ाना शुरू किया था। अमरिकी फेडरल रिजर्व ने पिछले पांच महीनों में चार बार ब्याजदर बढ़ाए हैं। इसके बावजूद महंगाई कम नहीं हुई है। फिर भी महंगाई को रोकने के लिए ब्याजदर में बढ़ोतरी ही प्रमुख हथियार होने की बात सेंट्रल बैंकस्‌ ड़टकर कह रही हैं। फेडरल रिजर्व के गवर्नर जेरोम पॉवेल ने भी अमरीका में अगले कुछ महीने ब्याजदर बढ़ोतरी कायम रखने का बयान किया है। 

रशिया पर प्रतिबंध लगाकर यूरोप को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पडेगा – महासंघ के विदेश प्रमुख की कबुली

अर्थव्यवस्था

ब्रुसेल्स – रशिया पर प्रतिबंध लगाकर उसके आर्थिक अवसर सीमित करने के बावजूद यूरोपिय महासंघ को इसी दौरान बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, यह बात महासंघ के विदेश प्रमुख जोसेफ बोरेल ने मानी। बोरेल के कबुलने से पहले विश्‍व की प्रमुख पत्रिका ‘द इकॉनॉमिस्ट’ ने भी रशिया पर पश्‍चिमी देशों द्वारा लगाए गएचप्रतिबंध असफल साबित होने का बयान किया है। शुरू के झटकों के बाद रशियन अर्थव्यवस्था फिर से स्थिर होने लगी है और ईंधन की बिक्री से भी रशिया को २६५ अरब डॉलर्स का भारी महसूल प्राप्त होगा, यह जानकारी ब्रिटीश पत्रिका ने दी है। 

रशिया-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रशिया पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमरीका और यूरोपिय देशों ने पहल की थी। आरंभिक दिनों में इन प्रतिबंधों से रशियन अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचा था। अमरीका ने रशियन अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ने की डींगें भी मारी थीं। लेकिन, पिछले कुछ दिनों में प्रतिबंध लगा रहे पश्‍चिमी देशों को ही इससे भारी नुकसान पहुँने लगा है, ऐसा स्पष्ट हो रहा है। महासंघ के विदेश प्रमुख बोरेल की कबूली इसी का हिस्सा दिखती है।

अमरिकी जनता को अभी कुछ समय तक वेदना बर्दाश्‍त करनी पडेगी – फेडरल रिज़र्व के प्रमुख का इशारा

वॉशिंग्टन – महंगाई का उछाल और इसे रोकने के लिए हो रही ब्याजदर की बढ़ोतरी की पृष्ठभूमि पर अमरिकी जनता को और कुछ समय तक वेदना बर्दाश्‍त करनी होगी, ऐसी चेतावनी फेडरल रिज़र्व के प्रमुख जेरोम पॉवेल ने दी। अमरीका में पिछले साल से महंगाई काफी उछाल पर हैं और जून महीने में महंगाई निदेशांक रिकार्ड नौ प्रतिशत के स्तर पर पहुँचा था। इस बढ़ती महंगाई को रोकने के लिए अमरीका की सेंट्रल बैंक ‘फेडरल रिज़र्व’ ने पिछले पांच महीनों में चार बार ब्याजदर की बढ़ोतरी की हैं। लेकिन, इससे महंगाई और अर्थव्यवस्था पर असर नहीं हुआ हैं, उल्टा अमरिकी जनता की त्रासदी अधिक बढ़ी है। 

शुक्रवार को ‘सेंट्रल बैंकिंग कान्फरन्स’ में किए भाषण के दौरान पॉवेल ने अमरिकी अर्थव्यवस्था को जल्द ही मंदी का सामना करना होगा, ऐसें संकेत दिए। ‘महंगाई को रोकने के लिए अमरिकी अर्थव्यवस्था को कुछ सख्त निर्णय करने होंगे। ब्याजदर बढ़ाने के बाद विकास दर कम होना और मनुष्यबल की कमी होने के साथ ही अमरिकी जनता और उद्योग क्षेत्र को वेदना बर्दाश्‍त करनी होगी’, ऐसी चेतावनी फेडरल रिज़र्व के गवर्नर ने दी। 

‘ओपेक’ के संकेत और ईरान के परमाणु समझौते की पृष्ठभूमि पर कच्चे तेल की कीमत फिर से प्रति बैरल १०० डॉलर्स पर 

वियना – ईंधन उत्पादक देशों के ‘ओपेक’ संगठन और अन्य ईंधन उत्पादक देशों ने तेल उत्पादन कम करने के संकेत दिए और ईरान के परमाणु समझौते को लेकर निर्माण हुए संभ्रम की पृष्ठभूमि पर कच्चे तेल की कीमत फिर से १०० डॉलर्स प्रति बैरल पर पहुँची हैं। ओपेक और सहयोगी उत्पादक देशों के ‘ओपेक प्लस’ गुट ने तेल उत्पादन कम करने का निर्णय लेने से कच्चे तेल की कीमत उछलकर प्रति बैरल १५० डॉलर्स तक पहुँचेगी, ऐसी चेतावनी विश्‍लेषकों ने दी है।

पिछले महीने वैश्‍विक मंदी का ड़र और कोरोना संक्रमण में हो रही बढ़ोतरी की पृष्ठभूमि पर कच्चे तेल की कीमत की १० प्रतिशत गिरावट हुई थी। इस वजह से कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल १०० डॉलर्स से भी कम हुई थी। फ़रवरी में शुरू हुए रशिया-यूक्रेन युद्ध के बाद पहली बार तेल की कीमत १०० डॉलर्स के स्तर से कम हुई थी। इसके बाद ओपेक और सहयोगी देशों ने उत्पादन में बढ़ोतरी करने के साथ ही चीन की अर्थव्यवस्था को लग रहे झटके और मंदी के महौल के कारण कच्चे तेल की कीमत १०० डॉलर्स से कम रही थी।

Read full Articles: www.newscast-pratyaksha.com/hindi/