Sadguru Aniruddha Bapu

जीवन में अनुशासन का महत्त्व - भाग १

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०७ अक्टूबर २०१० के पितृवचनम् में ‘जीवन में अनुशासन का महत्त्व’ इस बारे में बताया।

डिसिप्लीन यानी अनुशासन, संयम और उत्साह। यहाँ हेमाडपंतजी बता रहे हैं कि ये गुरुचरण ही सचमुच पायसम्‌ का स्त्रोत है। यानी सौम्य-स्निग्ध गुरुत्व का स्त्रोत है। यानी डिसिप्लीन यानी अनुशासन, संयम और उत्साह का मूलस्रोत क्या है? सद्‌गुरु के चरण। सद्‌गुरु के चरणों के स्पर्श से, उनके चरणों के ध्यान से, उनके चरणों के पूजन से हमें सबसे पहले क्या प्राप्त होता है? तो डिसिप्लीन प्राप्त होती है जीवन की, शिस्त जिसे कहते हैं, अनुशासन जिसे कहते हैं। डिसिप्लीन यानी अनुशासन, संयम और उत्साह। उत्साह भी आता है, नहीं तो डिसिप्लीन ज्यादा हो जाए तो क्या होता है? कुछ भी नहीं हो सकता। संयम बहुत ज्यादा होगा, तो इन्सान, क्या हो जाता है, इन्सान संन्यस्त बन जाता है। तो ये किसका गुणधर्म है? शितता का। शितत्व से क्या होता है? अपने जॉईन्ट्स में क्या होता है? झिरो डिग्री में आप लोग जाए, अंटार्टिका के उपर जाए तो क्या होता है? जॉईन्ट सिक हो जाते हैं, यू कॅन नॉट मूव प्रॉपरली और क्रॅम्स आते हैं, वो शितलता है। और सौम्यता क्या है? डिसिप्लीन ऍक्शन है, डिसिप्लीन मूवमेंट है, संयमित ऍक्शन है और साथ उत्साह भी है।

तो सद्‌गुरु के चरणों के पूजन से, चरणों के दर्शन से, चरणों के स्मरण से हमारे जीवन में, हमारे शरीर, भौतिक शरीर में, हमारे मनोमय शरीर में और प्राणमय शरीर में क्या उत्पन्न होता है? अनुशासन, संयम और उसके साथ-साथ उत्साह भी। अब बोलिए, अनुशासन की आवश्यकता किसे नहीं है? सभी को है। पहला दिन जन्मा, उस जन्म के दिन से लेकर मृत्यु के आखरी पल तक। हर एक इन्सान के जीवन में अनुशासन की बहोत आवश्यकता होती है। जिसका जीवन अनुशासनहीन है वो जीवन में कोई तरक्की नहीं कर सकता और कुछ नसीब अगर हासिल हुई भी तरक्की, तो क्या हो जाता है? जो पाया था उससे दस गुना गवाना पड़ता है।  

‘जीवन में अनुशासन का महत्त्व' के बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll