Human mind made from subtle essence of food | ‘मनुष्य का मन अन्न के तरल भाग से बनता है’ इस बारे में सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने बताया।

Human mind made from subtle essence of food | ‘मनुष्य का मन अन्न के तरल भाग से बनता है’ इस बारे में सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने बताया।

जिन लोगों ने श्रीमद्‍पुरुषार्थ ग्रंथराज पढ़ा हुआ है, वो लोग जानते हैं कि ये जो भावशारिरीक जो गुण होते हैं कि जिनके आधार से हमारे शरीर का, मन का और प्राणों का कार्य चलता रहता है।

छांदोग्य उपनिषद्‍ का नाम तो आप लोगों ने सुना होगा। छांदोग्य उपनिषद्‍ में कहा गया है कि मन: अन्नमय:। मन अन्नमय:। प्राण जलमय:। वाक् तेजोमय:। यानी मनुष्य का मन जो है, इंसान का, वो अन्न से बनता है। अन्न का जो स्थूल भाग है। हमारे शरीर में खाने के बाद अन्न के स्थूल भाग से ये सप्त धातु बनते हैं, रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र। ये सारे के सारे जो टिश्युज हैं, ये स्थूल विभाग से बनते हैं अन्न के। सूक्ष्म विभाग जो है, उससे रस यानी हार्मोन्स बनते हैं, एन्झाइन्स बनते हैं और जो तरल यानी अतिसूक्ष्म भाग है अन्न का, उसे इंसान का मन बनता है और अन्न के जिन गुणों से मन बनता है, उन्हें क्या कहते हैं? भावशारिरीक गुण कहते हैं।

यानी मनुष्य अपने प्रारब्ध से किसी भी स्वभाव का हो, किसी भी गुणों का हो उसे जो अपने गुण बदलने हैं, अपना स्वभाव बदलना है, तो पहले क्या बदलना चाहिये? उसका अन्न बदलना चाहिये, राईट! और भारतीय रिसर्चस ने, सायन्टीस्टस् ने अन्न पर जितना रिसर्च किया है, उतना पूरे जग में किधर भी नहीं हुआ हैं। आप कहाँ भी देखो खाने के कितने पदार्थ, जितने इंडिया में है, भारत में है, हमारे हिदुस्थान में है उतने बाहर कभी नहीं मिलेंगे। लेकिन जो वैदिक संस्कृती उसे हम भूल गये।

ये जो मसाले हम लोग डालते हैं कालीमिरी जिसे कहते है पेपर, राईट। ये औषध है, इसे मसाला बनाया गया है। ये मिर्च जो है, जिसे लंका कहते हैं, नाम ही हमें बताता है कि ये क्या है, ये भी एक औषधि है। ये जो ब्लॅकपेपर जो होता है, जिसे हम लोग ऑम्लेट में भराभर डालते हैं बस। एकच्युअली धिस इज अ मेडिसीन, जहाँ भी कफ का प्रादुर्भाव हो जाता है। जो शरीर में तीन धातु बेसीक हैं, कफ, पित्त और वात। जब कफ जो है प्रकुपित हो जाता है, यानी बढ जाता है, तब उसके छाटने का, कम करने का, नष्ट करने का कार्य करनेवाला सर्वोत्कृष्ट दवा ये ब्लॅकपेपर है। जब जुकाम होता है, ओके, जिसे हम लोग कहते हैं कॉमन कोल्ड या मेडिकल लँग्वेज में कहते हैं ऍक्युट कोराईझा।

तो जुकाम जो होता है तो लोग क्या कहते हैं? सूप ले लो भाई, सूप वगैरा, जो चिकन सूप जो भी हैं, लेते हैं। लेकिन उसमें हम लोग जो अगर उचित मात्रा में ब्लॅकपेपर डालकर पिये तो जुकाम पहले ही फिफ्टी परसेंट कम हो जाता है। तो ये औषध है, ये दवाई है, औषधि कहते हैं संस्कृत में और इनका इस्तेमाल रुचि बढ़ाने के लिये, टेस्ट बढ़ाने के लिये किया गया, लेकिन स्वल्प मात्रा में, अल्प इज डिफ्रन्ट, स्वल्प इज डिफ्रन्ट। स्वल्प यानी ऍप्ट, जितना चाहिये उतना ही, कम से कम ऍप्ट इज ऑलसो नॉट कम से कम ऍप्ट। जितना उचित मात्रा में कम से कम डालना चाहिये उतना ही। हम लोग क्या करते हैं, हमारी जीभ की टेस्ट के लिए उन्हें ज्यादा तिखा चाहिये, डालो ज्यादा मिर्च, ज्यादा काला मिर्च सब कुछ डालते रहते हैं। लेकिन ये औषधियाँ हैं, ये दावाईयाँ हैं, ये जान लो।

ज्यादा तिखा, खाने से अच्छा तो लगता है लेकिन अंदर कितने-कितने-कितने उत्पात होते हैं हम जानते नहीं।

‘मनुष्य का मन अन्न के तरल भाग से बनता है' के बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

 

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll