भारत को मात देने के लिए और हिन्दुत्व को ख़त्म करने के लिए चीन किस प्रकार नेपाल को कब्ज़े में करने की कोशिश कर रहा है

हाल ही में, तिब्बतस्थित कैलाश मानसरोवर तक पहुँचने के लिए भारत ने अपने उत्तराखंड राज्य में एक नये रास्ते का उद्घाटन किया। भारत से कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा के लिए जानेवालें तीर्थयात्रियों को अब तक ५ दिन पैदल यात्रा करनी पड़ती थी; इस नये रास्ते के कारण अब तीर्थयात्री वहाँ तक गाड़ी से केवल २ ही दिन में पहुँच सकेंगे। लेकिन नेपाल ने इस रास्ते पर ऐतराज़ जताया है। जवाब में भारत ने, यह रास्ता पूरी तरह अपनी ही सरहद में और अपने ही भूभाग में है, ऐसा कहा है। जान लें कि तीर्थयात्रियों के लिए सहायक साबित होने के साथ साथ, यह रास्ता चीन से होनेवाले किसी भी ख़तरे का सामना करने की दृष्टि से उच्च सामरिक महत्त्व रखता है। इसी कारण, विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ही इस रास्ते के मुद्दे पर आपत्ति जताने के लिए नेपाल को उक़सा रहा है।

हाल की घटनाओं को देखें, तो चीन भारत को परेशान करने के नये नये तरीक़ें अपना रहा है, जिनमें लद्दाख क्षेत्र में घुसपैंठ के प्रयास यह प्रमुख गतिविधि है। पिछले साल ही भारत ने लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग निकालकर केंद्रशासित प्रदेश बनाकर उसे ठेंठ अपने नियंत्रण में ले लिया था। इससे इस क्षेत्र में अनिर्बन्धित रूप से चलतीं आयीं चीन की भारतविरोधी गतिविधियों पर काफ़ी हद तक लग़ाम कसा गया है; जिससे चीन भड़क गया है और इसी कारण लद्दाख में घुसपैंठ की कोशिशें करने के साथ ही, चीनपरस्त नेपाल सरकार के ज़रिये भारतविरोधी हरकतें कर रहा है।

लेकिन भारत और नेपाल में इतनी समानताएँ हैं कि उन्हें एक-दूसरे के चचेरे भाई ही बोल सकते हैं। धर्म, संस्कृति, भाषा इन जैसे मुद्दों पर दोनों राष्ट्रों में काफ़ी समानताएँ हैं और दोनों देश व्यापार तथा आर्थिक संबंधों के मामलों में एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इतनाही नहीं, बल्कि दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के देश में बिना वीज़ा के प्रवास कर सकते हैं। इसके अलावा, हज़ारों नेपाली लोग रोज़ी-रोटी के सिलसिले में भारत के कोने कोने में जाकर बसे हैं; यहाँ तक कि भारतीय सेनादलों में भी कार्यरत हैं। लेकिन ऐसा होने के बावजूद भी, भारत और नेपाल के बीच के राजनयिक संबंध, ख़ासकर पिछले १२-१३ सालों से ख़राब चल रहे हैं। ऐसा क्यों, यह जानने के लिए हमें थोड़ा अतीत में - सन २००१ के आसपास झाँकना होगा।

 

महाराजा बिरेन्द्र

उस समय नेपाल यह एक हिंदु राष्ट्र था, जिसपर महाराजा बिरेंद्र की हुक़ूमत थी। वे बहुत ही धार्मिक क़िस्म के इन्सान जाने जाते थे; इतना ही नहीं, बल्कि भारत के कई धार्मिक तथा राष्ट्रीय संगठनों से भी वे संबंधित थे। भारत और नेपाल के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध होने चाहिए, ऐसा माननेवाले द्रष्टा वे थे।

लेकिन १ जून २००१ के दिन, महाराजा बिरेन्द्र और महारानी ऐश्वर्या सहित राजघराने के नौं सदस्यों की हत्या कर दी गयी; जो उनके खुद के पुत्र राजकुमार दीपेंद्र ने की होने की आशंका जताई गयी। महाराजा बिरेंद्र की जगह अब राजसत्ता की बाग़डोर किंग ग्यानेंद्र ने सँभाल ली। मग़र उनके पूर्वाधिकारी की तरह ग्यानेंद्र को जनता ‘अपना राजा’ नहीं मानती थी।

तब तक नेपाल में एक सशस्त्र बग़ावत की तैयारी की शुरुआत हो चुकी थी और यह आंदोलन काफ़ी ज़ोर पकड़ने लगा था। ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल’ (माओवादी)(सीपीएन-एम) यह माओवादी संगठन इस बग़ावत का नेतृत्व कर रहा था। जैसा कि इस पार्टी के नाम से ही पता चलता है, उनकी विचारधारा चीन की विचारधारा से बहुत ही मिलतीजुलती थी। मग़र चीन का सीपीएन-एम के साथ मेलजोल सिर्फ़ विचारधारा तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि और भी गहरा होता गया है।

सीपीएन-एम के प्रमुख ‘प्रचंड शी जिनपिंग के साथ

 

सन २००८ में सीपीएन-एम ने किंग ग्यानेंद्र की सत्ता का तख़्ता पलट दिया और नेपाल में सत्ता हथिया ली। सीपीएन-एम के इस उदय में चीन से मिलनेवाली सहायता ने अहम भूमिका निभायी थी। सीपीएन-एम अपने भारतविरोधी और चीनमित्रता के लिए जानी जाती है। जिसके कुछ उदाहरण देखते हैं -

- भारत और नेपाल के लोगों को और सामान को एक-दूसरे के देशों में मुक्त यातायात की सहूलियत देनेवाला और रक्षा एवं विदेशनीति के मामलों में एक-दूसरे के साथ साहचर्यभरे नज़दीकी संबंध स्थापित करनेवाला, सन १९५० का ‘भारत-नेपाल शांति-मित्रता समझौता’ खारिज़ किया जायें, ऐसी सीपीएन-एम की माँग है।

- नेपाली राजघराने में हुए हत्याकांड के लिए सीपीएन-एम ने भारत को दोषी क़रार दिया है। लेकिन दुनियाभर के कई अभ्यासकर्ताओं (साज़िश-सिद्धांतकारों - कॉन्स्पिरसी थिअरिस्ट्स्) का मानना है कि महाराजा बिरेंद्र के भारतानुकूल तथा धार्मिक दृष्टिकोण के कारण, चीन ने ही राजकुमार दीपेंद्र को अपने वश में करके, उसके ज़रिये महाराजा बिरेंद्र की हत्या करवायी।

- नेपाल, जो कि दुनिया में एकमात्र हिंदु राष्ट्र था, वह अब माओवादियों के बढ़ते दबाव एवं माँगों के कारण कथित (सो-कॉल्ड्) सेक्युलर राष्ट्र बन चुका है। विशेषज्ञों का मानना हैं कि यह भी सीपीएन-एम ने, हमेशा भारत का विरोध करते आये और नास्तिकों का देश जाने जानेवाले चीन के इशारे पर किया है।

- सन २००८ में बनी सीपीएन-एम जी सरकार ने हमेशा चिनी एजंट की तरह ही काम किया है और उसके अधिकांश निर्णय भारतविरोधी हुए हैं।

- सीपीएन-एम के प्रमुख ‘प्रचंड’ ने हमेशा, नेपाल में होनेवाले राजनीतिक विवादों के लिए भारत को ही ज़िम्मेदार क़रार दिया है।

- प्रचंड तथा सीपीएन-एम के अन्य नेताओं ने उनके समान विचारधारा होनेवाले भारतीय गुटों के साथ बैठकें कीं तथा उनके साथ मिलकर सज़िशें बनायीं, ऐसे आरोप होते रहे हैं।

- सीपीएन-एम ने भारतीय जेलों में बंद माओवादी कैदियों को रिहा करने की माँग भी की थी।

इन सब बातों को मद्देनज़र रखते हुए मुझे ‘तृतीय विश्वयुद्ध’ पुस्तक के लेखक डॉ. अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी ने नेपाल के बारे में जो लिखा था, वह याद आ रहा है - “इस तृतीय विश्वयुद्ध में नेपाल की भूमिका बहुत ही अहम रहेगी। चीन ने नेपाल के साथ (तथा भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य देशों के साथ भी) गहरी दोस्ती के संबंध बनाये हैं।

लेकिन इस देश (नेपाल) को अब इसके ज़हरीले फल चखने होंगे। चीन में प्रशिक्षण दिलाये गए माओवादी नेपाल में कोहराम मचा रहे हैं; लेकिन इन सब बातों से चीन का कोई भी लेनादेना नहीं है, ऐसा कहते हुए चीन ने अपने हाथ झटक दिये है” - यहाँ पर, डॉ. अनिरुद्धजी ने चीन-प्रशिक्षित और चीन-सहाय्यित माओवादियों से नेपाल को जो ख़तरा बन रहा है, उसका स्पष्ट रूप से विवरण दिया है।

वे आगे लिखते हैं - “नेपाल में चल रहें जनतंत्रवादी प्रयासों का समर्थन करना और उनकी सहायता करना यही भारत के भविष्य के लिए निश्चित ही फ़ायदेमन्द साबित होगा और यही बात दोनों देशों के जनतंत्रवादी चाहते हैं” - इस एक ही लाईन में, ‘चीन की दख़लअन्दाज़ी को और उसके ख़तरे को मात देने के लिए भारत को नेपाल में क्या रणनीति अपनानी चाहिए’ इसका सार वे लिखते हैं।

इन सब बातों को मद्देनज़र रखते हुए यह बात स्पष्ट रूप से सामने आ जाती है कि भारत को मात देने के लिए चीन अपने एजंटों के ज़रिये नेपाल का अधिग्रहण करने की और हिमालयन प्रदेश में बसे इस देश में से हिंदुत्व को ख़त्म करने की जानतोड़ कोशिश में लगा है।

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