सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु के अग्रलेख ऑनलाईन पढने का स्वर्णिम अवसर

हरि ॐ

हम श्रद्धावानों को त्रि-नाथों से जोडने वाले ‘समर्थ-सेतु’ स्वयंभगवान श्री त्रिविक्रम के भक्तिभाव चैतन्य में रहना, यही हर एक श्रद्धावान के लिए राजमार्ग है, यह मार्गदर्शन हमें परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु दैनिक प्रत्यक्ष के अग्रलेखों से कर रहे हैं।

हम सभी जानते हैं कि सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी विभिन्न मार्गों से अपने श्रद्धावान मित्रों के साथ संवाद करते हैं। हर गुरुवार को श्रीहरिगुरुग्राम में होने वाले पितृवचन (प्रवचन) के साथ ही ‘दैनिक प्रत्यक्ष’ के अग्रलेखों के माध्यम से भी वे अपने विचार श्रद्धावानों तक पहुँचाते हैं।

लेकिन काफ़ी समय से, खास कर महाराष्ट्र एवं देश के बाहर रहने वाले श्रद्धावान यह इच्छा प्रकट कर रहे थे कि सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु द्वारा दैनिक प्रत्यक्ष में लिखे जा रहे अग्रलेख उन तक यदि जल्द से जल्द पहुंचे तो सद्गुरु के इस अनमोल मार्गदर्शन से वे लाभान्वित हो सकते हैं।

श्रद्धावानों को यह बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि उनकी इस इच्छा को ध्यान में रखते हुए, सद्गुरु बापु के अग्रलेख अब हिन्दी भाषा में ‘वेब’ के माध्यम से (ऑनलाईन) श्रद्धावानों तक पहुँचाने का निर्णय लिया गया है।

‘दैनिक प्रत्यक्ष’ में जिस ‘तुलसीपत्र’ मालिका में सद्गुरु बापू के अग्रलेख प्रकाशित होते हैं, उसमें वर्तमान समय में ‘स्वयंभगवान श्रीत्रिविक्रम’ की महिमा से बापू हमें परिचित करा रहे हैं। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण रहने वाले २३ दिसम्बर २०१८ को ‘दैनिक प्रत्यक्ष’ में प्रकाशित हुए ‘तुलसीपत्र-१५७७’ इस अग्रलेख के साथ इस वेब-प्रकाशित अग्रलेख-मालिका का शुभारंभ होगा। अर्थात् इस मालिका के पहले पुष्प में ‘तुलसीपत्र-१५७७’, ‘तुलसीपत्र-१५७८’ और ‘तुलसीपत्र-१५७९’ इन ३ अग्रलेखों का समावेश होगा और इसी क्रम से भविष्य में अग्रलेख प्रकाशित किये जायेंगे।

दैनिक प्रत्यक्ष में ८ मार्च २०१८ को प्रकाशित हुए ‘तुलसीपत्र-१४६५’ के साथ स्वयंभगवान श्रीत्रिविक्रम के बारे में परिचयात्मक (इन्ट्रोडक्टरी) अग्रलेखों की शृंखला शुरू हुई थी। वे अग्रलेख भी ऊपरोक्त पहले पुष्प के साथ हर हफ़्ते क्रमानुसार प्रकाशित किये जायेंगे।

इस सुविधा का प्रतिवर्ष सब्स्क्रिप्शन रु. ७५० होगा।

सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु के अग्रलेखों का लाभ उठाने की इच्छा रखने वाले श्रद्धावानों के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर है।

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।। हरि ॐ ।। ।। श्रीराम ।। ।। अंबज्ञ ।। ।। नाथसंविध ।।