Sadguru Aniruddha Bapu

क्षीरसागर का मन्थन- भाग २

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने २४ फरवरी २००५ के पितृवचनम् में ‘क्षीरसागर का मन्थन’ इस बारे में बताया।

क्षीरसागर का मन्थन- भाग २अगर जो भी इन्सान अपनी जिंदगी में अमृतमंथन करना चाहता है, तो उसे पहली बात आवश्यक यह है कि पहले जान ले, तो पहली चीज़ है - ‘ज्ञानं’। ज्ञान, कौन सा ज्ञान, कौन सा ज्ञान? बड़ा ज्ञान नहीं, ब्रह्म-माया वाला ज्ञान नहीं, तो यही ज्ञान, यही जानना कि मेरे पास, मेरे खुद के पास, मेरे खुद का क्षीरसागर है।

दूसरा पॉइन्ट आवश्यक है - ‘भेद’। आप लोग बोलेंगे, हम लोग तो अभेद की बात करते हैं, अद्वैत की बात करते हैं। बापु आप ‘भेद’ की बात कर रहे हैं, हाँ, भेद। भेद यानी डिविजन - विभाजन, कौन सा? कि मेरा क्षीरसागर मेरा है, उसका क्षीरसागर उसका है। उसके क्षीरसागर से मुझे कुछ नहीं मिलने वाला, मेरे क्षीरसागर से उसे कुछ नहीं मिलने वाला। अगर आप दूसरे किसी के क्षीरसागर का मंथन करने जाओ, तो उसमें कोई चीज़ मुझे प्राप्त नहीं हो सकती। यानी कि मैं दूसरे के, किसी के नसीब का कुछ भी छीन नहीं सकता, ना मुझे कोई कर्ज़ा भी दे सकता है, ना मैं किसी का छीन भी सकता हूँ, ये ध्यान में रखो भाई! और वैसे ही मेरे नसीब में जो है, वो कोई छीन नहीं सकता, कोई छीन नहीं सकता। मेरे क्षीरसागर से क्या उत्पन्न करना है, यह मुझपर निर्भर है। भगवान बैठा है सब कुछ देने के लिए, सारे रत्न देने के लिए, लेकिन प्रयास तो मुझे करने हैं। मैं, प्रयास किये बीना, ऐसे बैठ जाऊँ, मेरी खेती है सौ भीगा, लेकिन मैं खेती नहीं कर रहा हूँ, तो क्या होगा? कुछ नहीं होगा, भूखे मरना पड़ेगा। वैसी हालत होती है। तो दूसरा पॉइन्ट है - भेद जानना।

ज्ञान, पहला पॉइन्ट है - ज्ञान। दूसरा पॉइन्ट है - भेद यानी कि भाई क्षीरसागर मेरा, मेरा क्षीरसागर है, तुम्हारा क्षीरसागर तुम्हारा है। यहाँ डिविजन अच्छी है। जानना चाहिए कि एक-दूसरे के, नहीं, इसी लिए मैं कहता हूँ भाई, ‘सबकी अपनी-अपनी कतार अलग-अलग होती है, सबका अपना-अपना क्यू होता है सद्‌गुरु के पास’। कोई किसी दूसरे के क्यू में जाकर घुस नहीं सकता। हर एक का अपना ‘विमलचित्त’ अलग है। हर एक का अपना-अपना क्षीरसागर अलग है। हर एक के क्षीरसागर में सब कुछ, इसी लिए बात क्या है?

तो जिसका क्षीरसागर बड़ा है, उसके लिए बात आसान है। क्योंकि जितना क्षीरसागर रहता है, उतना ही बल रहता है। तुलसीदासजी जो कहते हैं, बात बहुत सोचकर उन्होंने कही है - ‘बल बुधि बिद्या देहु मोहिं’ और जितने पर्सेन्टेज में, जितने प्रमाण में ये उनके पास क्षीरसागर है, उसी पर्सेन्टेज में, उतनी ही मात्रा में उनके पास बल भी रहता है। जितना क्षीरसागर, उसी पर्सेन्टेज में, उतनी मात्रा में बल। जिनके पास बड़ा क्षीरसागर है, उनके पास बड़ी मात्रा है। जो छोटा क्षीरसागर है, उनकी मात्रा भी, उससे भी बहुत छोटी है। प्रयास तो दोनों को करने पड़ेंगे। एक के लिए प्रयास आसान है, एक के लिए कठिन है। और कठिन होने के कारण उसी के मन में ज्यादा विचार उत्पन्न होता है कि मैं असुरों की सहायता ले लूँ। नहीं चलेगा।

तीसरा पॉइन्ट जो है, क्षीरसागर मंथन प्राप्त करने के लिए, मंथन ठीक तरह से करने के लिए, अमृत पाने के लिए, चौदह रत्न पाने के लिए यह तीसरा पॉइन्ट जो है, वह पॉइन्ट, उस तीसरे पॉइन्ट को कहते हैं - ‘जराहरता’। हम हलाहल की बात कर रहे थे, यहाँ क्या बात है, कौनसा पॉइन्ट है- जराहरता। जरा यानी बुढ़ापा, बीमारी। जराहरता यानी बुढ़ापा जो विकलांग है, उसे दूर रखना। चौथा पॉइन्ट ऋषिवर कहते हैं - ‘निश्चलता’। निश्चलता, वो भी कैसे? ‘पद-कमल-लीन’, पद-कमल-लीन निश्चलता। जिसे एक बार खुद का भगवान माना है, उस रूप के चरणों के प्रति निश्चल रूप से रहना। चाहे सर टूटे या माथा, लेकिन तेरे पाँव नहीं छोडूँगा। बस! यही निश्चय होना चाहिए मेरा। सब कुछ बदल जाता है भाई, सब कुछ बदल जाता है।

‘क्षीरसागर का मन्थन’ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll

॥ नाथसंविध् ॥