श्री वनदुर्गा योजना
यह एक ऐसी योजना है जिसके अंतर्गत बहुत बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाता है। निर्वनीकरण (वनों की कटाई) को रोकना, मिट्टी के कटाव को रोकना, मरुस्थलीकरण को रोकना ये सभी कार्य ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए बहुत प्रभावशाली साबित होते हैं। वृक्ष ऑक्सिजन गैस को उत्सर्जित करते हैं, जो हमारी महत्त्वपूर्ण मूलभूत ज़रूरत है। साथ ही, वृक्ष उस कार्बन डाई ऑक्साईड को ग्रहण कर लेते हैं, जो कि ग्लोबल वॉर्मिंग पैदा करती है। अर्थात् वृक्ष हमें वह देते हैं, जो हमारी ज़रूरत है; और वृक्ष वह ग्रहण करते हैं, जो हमारे लिए हानिकारक है। इस प्रकार वृक्ष मनुष्य के जीवन की मूलभूत अहम ज़रूरतों को पूरा करते हैं। ‘श्री वनदुर्गा योजना’ एक ऐसी ही पहल है, जिससे हमें पर्यावरण में संतुलन बनाये रखने में मदद मिलती है।
पर्यावरण में हो रहा ऱ्हास मानव-जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता रहा है। पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के उद्देश्य से ‘श्री अनिरुद्ध उपासना फाउंडेशन’ और ‘अनिरुद्धाज् ऍकॅडमी ऑफ डिझास्टर मॅनेजमेंट’ पूरे महाराष्ट्र के कई भागों में सक्रिय रूप से वृक्षारोपण ड्राइव्ज् आयोजित कर रहे हैं।
कुछ महीने पहले सद्गुरु अनिरुद्ध ने ‘श्री वनदुर्गा योजना’ शुरू की, जिसके अंतर्गत वृक्षारोपण पर ज़ोर दिया गया है। वृक्षों की लगातार कटाई के परिणामस्वरुप एक अत्यंत विपरित पर्यावरण का निर्माण होता जा रहा है। ज़ाहिर है, ‘श्री वनदुर्गा योजना’ एक ऐसी पहल है, जो अपने पर्यावरण को संतुलित बनाने में हमारी मदद करेगी।
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पर्यावरण की सुंदरता को बढ़ाने के अलावा, ग्लोबल वार्मिंग को कम करके जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में भी वृक्ष मदद करते हैं। यह अभियान हमारे पर्यावरण का पुनर्विकास होने में सहायकारी साबित होगा ही; साथ ही, सद्गुरु अनिरुद्ध ने आध्यात्मिकता के महत्व पर भी ज़ोर देकर कहा कि इस उपक्रम के तहत कार्य करते समय मंत्रो का जाप करें (माता जगदम्बा को याद करें), जिससे कि इसमें बहुत ही सकारात्मकता आयेगी।
इस पहल को इन आसान वैज्ञानिक चरणों से पूरा किया जा सकता है।
'हम जैसा बोते है, वैसा ही हम पाते है' यह सिद्धांत हम जानते ही हैं। उसीके अनुसार अहम बात यह है कि फल खाने के बाद हमें उसके बीजों का वृक्षारोपण के लिए उपयोग करना है। फल खाने के बाद उसका बीज फेंक देने के बजाय, उसे धोकर सूखाकर रखा जाता है, ताकि वह अंकुरित होने लायक है या नहीं, यह जान सकें। चीकू या आम जैसे किसी भी फल के बीज, यहाँ तक कि बादाम, काजू जैसे ड्राई-फ्रुट्स के बीज भी इस उद्देश्य के लिए संग्रहित कर उपयोग में लाये जा सकते हैं।
निम्नलिखित वीडियो को और जानने के लिए
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सूखे हुए इन बीजों को पानी से भरे कंटेनर में रखें। यदि बीज पानी में नीचे तक डूब जाते हैं, तो ये अंकुरणक्षम हैं। बाक़ी के ऊपर तैरनेवाले बीजों को फेंक दें। वृक्षारोपण का काम मई से जून के महीने की कालावधि में किया जाना चाहिए, ताकि बीजों को सूरज की रोशनी तथा बारिश का पानी पर्याप्त मात्रा में मिल सकें और अंकुरण की प्रक्रिया जल्द ही हों।
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