अग्नि और जल
सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ३० जून २००५ के पितृवचनम् में ‘अग्नि और जल’ इस बारे में बताया।
जल, यह जो हमारा शरीर है, यह शरीर दिखता है तो, क्या पानी दिखता है शरीर में कहीं? बाहर से नहीं दिखता। हर कोई जो सायन्स का स्टुडण्ड है, जानता है कि शरीर का कितना हिस्सा पानी है? ७०% वॉटर है इस शरीर में। पृथ्वी पर कितना पानी है और कितनी जमीन है? ७०%, सेम पर्सेन्ट। जो पृथ्वी पर है, वही देह में है, वही है। देह में अगर आप पेशी लिजिए एक, वन सेल, एवरी सेल ऑफ बॉडी, सेम पर्सेन्टेज ऑफ माइक्रोन ऍन्ड वॉटर। इसका मतलब है, ये जलतत्व और अग्नितत्व, इनका एक दूसरे के साथ संबंध है और इसके साथ-साथ इस जल को जलत्व देता है अग्नि। जल को जलत्व देता है अग्नि और अग्नि को आग्नेयता देता है जल, अग्नि को आग्नेयता देता है जल। कैसे? हमें प्रुफ चाहिए। हमें देखना है, हमारी जिंदगी में कैसे, सिर्फ कोई कहता है इसी लिए नहीं मान सकते।
सीधी बात है, देखो भाई, ये अग्नि उत्पन्न कैसे हुआ है? पिछली मरतबा मैं बात कर रहा था यज्ञ पर। तो पहले मरतबा देखा तो, लकड़ी पर लकड़ी घिस रही थी। ये लकड़ी कहाँ से आयी? वनस्पति कहाँ से उत्पन्न होती है? ये जीवन कहाँ उत्पन्न हुआ है? पानी में उत्पन्न हुआ है। आज का सायन्स जानता है कि फर्स्ट लाइफ इज इन्ट्रोड्यूसड् इन वॉटर्स। पानी में पहला जीवन बना है। पानी में वनस्पति बनी है और पानी के सिवा कहीं पर वनस्पति उग ही नहीं सकती। उसी लकड़ी में अग्नि रहता है। क्या उस लकड़ी में जो अग्नि रहता है, उसे आप देख सकते हैं? नहीं। लेकिन जब एक दूसरे पर घिसतें हैं, तब वो अग्नि उत्पन्न हो जाता है। हम जब हवन करने बैठ जाते हैं, तो भाई क्या करते हैं? लकड़ी रखते हैं, लकड़ी पे क्या ड़ालते हैं, घी ड़ालते हैं जलाने के बाद। तो घी क्या है? शीत है। जो थोड़ा भी जानते हैं घी के बारे में, घी कैसा है? घी शीत है। घी से अग्नि प्रदीप्त होता हैं वहाँ। लेकिन हम खाते हैं घी वही तो ऍसिडिटी कम हो जाती है। जिसका वजन बढ़ नहीं रहा है, ज्यादा अग्नि के कारण, तो उसे घी खिलाते हैं, उसका वजन बढ़ने लगता है। यानी घी क्या है? शीत है। घी शीत है, उसे अग्नि में ड़ाला जाए तो अग्नि भड़क उठता है। अभी कर्पूर, कापूर जिसे कहते हैं। कापूर भी अग्नि में ड़ालते हैं हवन करने के लिए, तो कापूर कैसा है? आप आयुर्वेद में जाके देखिए, शीत है। यानी अग्नि को प्रदीप्त करनेवाले जो पदार्थ हैं घी और कापूर - कर्पूर ये दोनों कैसे हैं? शीत हैं, जलीय अंश हैं और फिर भी इन्हीं से अग्नि उत्पन्न होता है, इन्हीं में अग्नि रहता है, लेकिन उसे हम देख नहीं सकते।
वैसे जल में अग्नि रहता है, लेकिन हम उसे देख नहीं सकते। आप कहेंगे बापू! क्या बात करते हैं, पानी में कहाँ भी देखो, लकड़ी पर लकड़ी घिसो तो अग्नि निर्माण होता है, हम देख सकते हैं, जल में से कहाँ अग्नि निकला भाई? जल में कहाँ आग लगती है, लगती तो भी बूझ जाती है। ज्यादा से ज्यादा हम देखते हैं कि कुछ ऑइल कि कुछ बह रहा है वहाँ सागर में, तो वहाँ अग्नि भड़क उठता है। क्या वो अग्नि है? नहीं? इलेक्ट्रिसिटी कहाँ से बनती है भाई? पानी से बनती है और इलेक्ट्रिसिटी क्या है? अग्नि है।
यानी कि पानी के गर्भ में अग्नि है और अग्नि के गर्भ में पानी है।
‘अग्नि और जल’ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
|| हरि: ॐ || ||श्रीराम || || अंबज्ञ ||
॥ नाथसंविध् ॥