सारे भारतवर्ष को नम्र आवाहन
मुझे भारत के किसी भी राजकीय पक्ष में या किसी भी प्रकार के राजकीय कार्य में रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं है।
राजनेताओं से मुझे कुछ भी लेने की इच्छा नहीं है और उन्हें देने जैसा भी मेरे पास कुछ भी नहीं है।
परंतु मेरी प्रिय मातृभूमि का हित अथवा अनहित इनके बारे में मुझे निश्चित रूप से ज़बरदस्त इंटरेस्ट है और वह हमेशा वैसा ही रहेगा।
वर्तमान समय का जागतिक वातावरण बहुत ही विचित्र पद्धति से तरह तरह के खेल खेल रहा है।
कोई भी राजनीति - यहाँ तक कि ग्रामपंचायत, राज्य, राष्ट्र और आंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हमेशा ही टेढे मेढे मोड लेती रहती है।
परंतु वर्तमान जागतिक राजकीय दाँवपेंच विनाशकारी, विघटनकारी और मानवी मूल्यों का पूरी तरह विध्वंस कर सकेंगे इसमें बिलकुल भी संदेह नहीं है।
ऐसे इस जटिल एवं पेंचीदा जागतिक वातावरण में कुछ शाश्वत मूल्यों के आधार पर ही हर एक कदम उठाना यह भारत के लिए बहुत ही आवश्यक है।
अमरीका की उत्पत्ति, इतिहास एवं कार्यपद्धति हमेशा ही बहुत ही गहरा राज़ रही है। स्वार्थ से कोई भी अछूता नहीं रहा है। लेकिन अमरीका के स्वार्थ ये हमेशा ही बहुत ही विचित्र, विलक्षण और बहुत बार अत्यधिक क्रूर पद्धति से अमरीका के शासक पूरे करते आये हैं।
रशिया यह भारत का बहुत ही पुराना एवं जानकार मित्र है और भारत फिलहाल रशिया से दूर होते जा रहा साफ साफ दिखायी दे रहा है।
अमरीका के साथ रिश्ते सुधारना और बढाना यह आर्थिक एवं परराष्ट्रीय नीति की दृष्टि से बहुत आवश्यक ही है।
परंतु रशिया ने ही हमें परामाणु-विज्ञान से लेकर अनेक प्रकार का तन्त्रज्ञान दिया है और प्रायव्हेटायझेशन की धुन में अमरीका से व्यर्थ नज़दीकियाँ बढाकर रशिया को अस्वस्थ करना यह भारत के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकने वाला है।
आंतरराष्ट्रीय राजनीति में विचारों, वक्तव्यों एवं कृतियों का संतुलन रखना बहुत ही आवश्यक होता है।
रशिया का हाथ छोड देने से एक दिन भारत का इस्तेमाल करके अमरीका भारत को बेसहारा बनाकर छोड सकती है। हम आर्थिक एवं राजकीय महासत्ता बन रहे हैं, इस धुन में भारत को नहीं बरतना चाहिए।
रशिया के साथ मित्रता करने से कोई भी राष्ट्र कम्युनिस्ट नहीं बना है या अमरीका के साथ दोस्ती करने से कोई भी राष्ट्र प्रजातान्त्रिक नहीं बना है।
जो हम होते हैं वह होते हैं। लेकिन यह समझने के लिए पैरों का ज़मीन पर होना आवश्यक होता है।
आप का नम्र,
डॉ. अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी