विश्व को थर्रानेवाली ‘ आयएस ’ - भाग २
’आयएस’ का इरादा है कि, कुछ समय पहले अल कायदा और तालिबान के कब्जे में जो अफगाणिस्तान और अंजरपंजर ढीले हो चुका पाकिस्तान को वह अपने कब्जे में कर ले। ’आयएस’ के आतंकी अफगाणिस्तान-पाकिस्तान में घुसकर इन दोनों देशों की सीमाओं पर अपना तंबू ठोके हुए तालीबान के हक्कानी गुट और अल कायदा के लिए बडी चुनौती बन रहे हैं। दावा किया जाता है कि, ‘तेहरिक-ए-तालिबान’ का ‘शाहिदुल्लाह शाहीद’ गुट ’आयएस’ में शामिल हो चुका है। और ऐसी घनी संभावना मानी जाती है कि, तालिबान के अन्य गुट भी उसी का अनुकरण करेंगे।
‘ आयएस ’ ने तो अफगाणिस्तान में हमले करने शुरु कर दिए हैं और पाकिस्तान के वायव्य सीमाभाग से राजधानी इस्लामाबाद स्थित प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के प्रशासकीय निवासस्थान के पास वाले इलाके तक ’ आयएस ’ के परचे पहुंच गए हैं। पाकिस्तान के पेशावर और अन्य कुछ शहरों की दीवारें ’ आयएस ’ के संदेश से पुती हुई हैं। पाकीस्तान में ’आयएस’ के समर्थक, हितचिंतकों का बडा गुट बन रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ की वर्चस्व वाले पंजाब प्रांत में भी ’आयएस’ ने अपना प्रचार शुरु कर दिया है।
इन परचों के साथ ही पाकिस्तान के सैनिकी युद्ध की तैयारी भी ’आयएस’ ने की है। यहां के 12 हजार तालिबान समर्थक ’आयएस’ में शामिल हो जाने की खबर पाकिस्तानी सुरक्षा प्रणाली ने दी। पाकिस्तान के इस आतंकी संघटना की सहायता से पंथिय संघर्ष करने का दांव ’आयएस’ ने रचा गया है। इस संघर्ष में यदि पाकिस्तानी फौज हस्तक्षेप करती है तो निर्णायक हमला करने की धूर्त रचना ’आयएस’ ने रची है।
इसकी वजह से अल कायदा का समर्थन करनेवाले पाकिस्तान के लिए ’ आयएस ’ बडा संकट बन सकती है। इराक-सीरिया में ’आयएस’ द्वारा प्रदर्शित क्रूरता और निर्दयता देखकर ’आयएस’ नाम का भूत दम न घोट दे, अत: इससे बचने के लिए पाकिस्तान तैयारियां कर रहा है। मगर पाकिस्तान की भूमि आतंक की परवरिश करने के लिए और बढावा देने के लिए बहुत ही अनुकूल मानी जाती है। ऐसी स्थिति में ’ आयएस ’ को रोकना पाकिस्तान के लिए सबसे बडी और कठिन चुनौती है।
इराक-सीरिया में वर्चस्व वाले भाग में ’ आयएस ’ का प्रशासन सारी दुनिया देख रही है। ’ आयएस ’ के कब्जेवाले इलाकों में अल्पसंख्यकों को बाजार में सरेआम गुलाम बनाकर बिक्री की जा रही है। अफघानिस्तान में तालीबान के राज में भी गुलामों की बिक्री की गई थी, मगर ’आयएस’ इससे भी आगे बढकर इन अल्पसंख्यकों पर अत्याचार कर रही है। इसकी थर्रानेवाली बातें प्रसिद्ध हो रही हैं। ’आयएस’ के कब्जे में एक महीला ने बताया था कि उस पर कुछ ही घंटों में 30 बार बलात्कार किया गया। अमेरीका इस इलाके में बम फैंककर ’हमेशा के लिए’ हमें इन हालातों से छुटाकारा दिला दे ऐसी दयालुतापूर्ण बिनती भी उस महीला ने की थी। सोशल मीडिया द्वारा उसकी यह मांग विश्व के समक्ष पेश हुई। लगभग ऐसी 5 से 7 हजार महीलाओं को ’आयएस’ ने एक कारागृह में कैद किया हुआ है और उनका ऐसा ही इस्तेमाल किया जाता है।
तो दूसरी ओर अपने विरोधकों का सर कलम करके उनके सर ’ आयएस ’ समर्थक के 2-3 साल के बच्चे को ’फुटबॉल’ बनाकर खेलने देने का अघोरी तरीके अपनाए जा रहे हैं। कुछ स्थानों पर तो ’ आयएस ’ ने 12-13 साल के बच्चों के हाथों सर कलम करवाए और उन बच्चों ने भी यह काम बडे चाव हसते हुए से किया। यह क्रूरता और पशुवृत्ति ’ आयएस ’ की पहचान बन चुकी है। हिटलर ने जर्मन सैनिकों से कहा था कि, ’इतनी अमानुष क्रूरता का प्रदर्शन करो कि हमारे दुश्मनों के रोंगटे खडे हो जाएं और वे युद्धभूमि छोडकर भाग जाएं।’ ’आयएस’ के आतंकी भी कुछ इसी तरह के आदेश का पालन कर रहे होंगे, और उन्हें सफलता भी मिल रही है। क्योंकि ’आयएस’ के उभरने के बाद और इस संघटना द्वारा घटित अमानुष हत्याकांडों के बाद, इराक के अधिकांश सैनिक लडे बगैर ही भाग गए। खास बात तो यह है कि, ’आयएस’ को किसी का भी डर नहीं है। उसके विरोध में तैनात अमेरीका और खाई के देशों की सेनाओं से भी ’आयएस’ बेफिक्र है।
’आयएस’ को अपनी ताकत पर पूरा भरोसा है, बल्कि इस संघटना की भविष्य की योजना तैयार दिखाई देती है। वास्तव में यह आतंकी संघटना खुदको किसी भी एक देश तक सीमित नहीं रखती। इराक की सरकार ’ आयएस ’ की दुश्मन है। सीरिया की अस्साद सल्तनत ’आयएस’ को अपना दुश्मन मानती है। सौदी अरेबिया और खाडी के अन्य देशों में से कोई भी ’आयएस’ का समर्थन नहीं करते। ईराण भी ’आयएस’ के विरोध में लडने की तैयारियां कर रहा है। इस्राईल ने तो ’ आयएस ’ द्वारा धोखे के मद्देनजर अपने सुरक्षा दलों को सजगता के आदेश दिए हैं। रशिया, चीन जैसे विश्व की प्रमुख सत्ताकेंद्रवाले देश ’आयएस’ को खाडी में असंतुलन फैलानेवाली आतंकी संघटना मानते हैं। अमेरीका, फ्रान्स, ब्रिटन, कैनडा, ऑस्ट्रेलिया द्वारा ’आयएस’ पर हवाई हमले किए जा रहे हैं। संक्षिप्त में कहें तो विश्लेषकों के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि, विश्व के सभी प्रमुख देशों के हमले और विरोध सहने पर भी ’आयएस’ अपना विस्तार कैसे कर पा रही है? इसका उत्तर बहुत आसान भी और कठिन भी। इराक और सीरिया की स्थिति ’आयएस’ के लिए पोषक साबित हो रही है।
मगर इससे हटकर सोचें तो ’ आयएस ’ की स्थापना से घटी घटनाओं का और उससे पहले की परिस्थियों का जाएजा लेना बहुत जरुरी है। हमें इस संघटना के नाम से शुरुआत करनी चाहिए। ’आयएसआयएस’ अर्थात ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक ऐंड सिरिया’ यह इस संघटना का हाल में रखा गया नाम है। इससे पहले यह संघटना ‘आयएसआय’ अर्थात ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक’ के नाम से जानी जाती थी। इसके बाद के दौर में यह ‘आयएसआयएल’ अर्थात ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक ऐंड लिवंट’ के नाम से मशहूर थी। लिवंट का अर्थ है खाडी के बीचोबीच में समन्दर के पास का भाग। इसमें सीरिया, लेबेनॉन, इस्राईल तथा इजिप्त का समावेश है। इस लिवंट पर अपना आतंकी साम्राज्य स्थापन करने की ’अबू मुसब अल-जरकावी’ नामक आतंकी नेता की महत्वकांक्षा थी।
सन 2006 में अमेरीका द्वारा इराक में किए गए हमलों में यह जरकावी मारा गया। अमेरीकी फौजी अधिकारी ने इस घटना को अमेरीका द्वारा जारी इराक युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण घटना बताई थी। इराक में अमेरीकी सैनिकों को मौत के घाट उतारनेवाले भीषण हमले जरकावी ने कराए थे। वह ओसामा बिन लादेन जितना ही या उससे भी ज्यादा खतरनाक माना जाता था। इसलिए अमेरीका ने उसके सर पर भी लादेन जितना ही इनाम रखा था। इस जरकावी के मारे जाने के बाद ‘अल कायदा इन इराक’ इस संघटना का नेतृत्व ’अबू अयुब अल मस्री’ के पास आ गया। वह कुछ खास कर नहीं कर पाया। उसके पश्चात इस संघटना का नेतृत्व अबू अमर अल बगदादी के पास आया। वह भी निष्प्रभ साबित हुआ। उसने इस संघटना का नाम ‘इस्लामिक स्टेट इन इराक’ (आयएसआय) रखा। यह अबू अमर अल बगदादी भी अमेरीका के हवाई हमले में मारा गया। उसके साथी और इस संघटना के प्रमुख नेताओं की धरपकड हुई और उन्हें इराक के ’कैंप बुका’ जेल में रखा गया। इन में अबू बक्र अल बगदादी नामक आतंकी का भी समावेश था। यह बगदादी आगे चलकर ’आयएस’ की स्थापना करेगा... अगर इस बात की जरासी भी भनक अमेरीका या इराक को होती तो.....
‘अल कायदा इन इराक’ या ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक’ यह संघटना अब नहीं रही, अमेरीका का ऐसा मानना है। एक समय पर लादेन ने ही इस संघटना को अल कायदा की शाखा कहा था। पर कुछ समय बाद लादेन ने कहा था कि उसका इस संघटना से कोई संबंध नहीं है। इसलिए अमेरीका तथा अपने पैरों पर खडे रहने की कोशिश करती हुई इराक की सरकार ने इस संघटना की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया। अमेरीका के आशिर्वाद से इराक में चुनी गई मलिकी सरकार का चेहरा अलग था, उस पर इस देश के अल्पसंख्यक सुन्नी पंथियों की ऐसी सोच थी कि इसमें उनका कोई स्थान नहीं है।
अब अमेरीका के समक्ष इन सुन्नी गुटों को समझाने की चुनौती आन खडी हुई। इराक में तैनात अमेरीका के तत्कालीन फौजी अधिकारी डैविड पेट्रॉस ने इराक के सुन्नी पंथियों के गुटों को साथ लेकर यह उलझनें सुलझाने की कोशिश की। सुन्नी पंथियों की ‘अवेकनिंग काऊन्सिल’ नामक संघटना और उसे अमेरीकी फौज का सहयोग यह अमेरीका की व्यापक योजना का भाग था। ‘अवेकनिंग काऊन्सिल’ अल कायदा से निकले हुए लोगों का गुट था। उसकी सहायता करने हेतु इस गुट से जुडे हुए आतंकी नेताओं को अमेरीका सहानुभूतिपूर्ण नजरों से देखा करता था।
ऐसे दौर में अर्थात सन 2009 में अबू बक्र अल बगदादी ’कैंप बुका’ जेल से रिहा हो गया। बताया जाता है कि, उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था। बगदादी जेल से रिहा होते ही अपनी संघटना बनाने लगा। तब अमेरीका अपनी फौज को इराक से निकालने में लगी थी। अमेरीका के नए राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने प्रचार में कहते थे कि इराक युद्ध अमेरीका की गलती थी। इसलिए जॉर्ज बुश अर्थात पूर्व राष्ट्रपति द्वारा छेडे गए इराक युद्ध से ओबाम को लगाव नहीं था। इराक से अमेरीकी फौज की वापसी के जारी रहते ही, इराक में अंतर्गत पंथिय संघर्ष तीव्र हो चुका था। इराक से पूरी अमेरीकी सेना के निकल जाने के कुछ अरसे बाद सन 2011 में अरबी खाडीवाले देशों में ’लोकतंत्र’ और ’राजकीय सुधारणाओं’ की मांग करनेवाला जस्मिन रिवोल्यूशन शुरु हो गया।
(क्रमश:)