विश्व को थर्रानेवाली ‘ आयएस ’ – भाग १
अमेरीका ने इराक युद्ध जीत लिया, ऐसी गर्जना राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सन २०११ के दिसम्बर मास में की थी। अमेरीका ने इराक से नौं साल बाद सेना को वापस बुलाया था। ४५०० सैनिकों का बलिदान और अरबों डॉलर खर्च करके अमेरीका ने उन नौं सालों में क्या हासिल किया? इस प्रश्न का ‘विजय’ ही एकमात्र उत्तर था। अर्थात अमेरीकी राष्टपति जिसे विजय कहते थे, क्या वह विजय है, इस बात पर बडे मतभेद थे। अमेरीका में और अमेरीका से बाहर विश्वभर में कई लोग दावा करते हैं कि अमेरीका की सारी कोशिशें व्यर्थ हो गईं। पर अंतत: स्वदेश लौटे हुए अमेरीकी सैनिक और उनके परिवारवालों के खिले चेहरे देखकर अमेरीकी जनता ने इस समाप्त हुए खर्चीले युद्ध से चैन की सांस ली।
ओबामा द्वारा घोषित इराक में अमेरीका का विजय कुल दो-ढाई सालों तक भी नहीं टिका, और तीन साल पूरे होने से पहले ही अमेरीका को इराक में हवाई हमले करने पड रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि ओबामा पर ऐसी घोषणा करने की स्थिति आ गई है कि समय पडने पर अमेरीका को इराक में सैनिकों की संख्या भी बढानी पड सकती है और जरुरत पडी तो इराक में घुसकर सैनिकी कारवाई भी करनी पडेगी। फिरसे ब्रिटन, फ्रान्स, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कैनडा को साथ लेकर अमेरीका को इराक में अपने दुश्मन पर हवाई हमले करने पड रहे हैं। इससे कोई फायदा नहीं हो रहा है यह देखकर ओबामा सैनिकी कारवाई की भाषा बोलने लगे हैं, क्योंकि इराक और सीरिया में बहुत बडी मात्रा में नरसांहार और अमानुष क्रूरता का प्रदर्शन करनेवाली ‘आयएस’ नामक आतंकी संगठन ने ओबामा के सारे अंदाजे गलत साबित कर दिए हैं। अमेरीकी राष्ट्रपति को यह बात सरेआम माननी पडेगी।
अमेरीकी राष्ट्रपति का अंदाजा गलत साबित करनेवाली ‘आयएस’ इराक और सीरिया का ही नहीं बल्कि सारे विश्व की जनता की धडकन रोक रही है, क्योंकि इस आतंकवादी संगठन की क्रूरता विडियो क्लिपिंग्स द्वारा सारा विश्व देख रहा है। ‘आयएस’ द्वारा निर्दयता से की जानेवाली हत्याएं न्यूज चैनलों और अखबारों के लिए रोजमर्रा की बात बन चुकी है। आयएस द्वारा महिलाओं पर किए गए भीषण अत्याचारों की बातें सुनकर किसी के भी रोंगटे खडे हो जाएंगे। इतना ही नहीं, बल्कि बालि उमर के लडके को इन्सान का सर फुटबॉल बनाकर खेलानेवाले जग में सबसे अमीर, सामर्थ्यशालि और इराक तथा सीरिया समेत विश्व में कहीं भी रासायनिक, जैविक और आण्विक हमले करनेवाली एकमात्र आतंकी संगठन है। बल्कि अब तक जिस किसी आतंकी संगठन की जानकारी लोगों तक पहुंची है, उनमें से एक भी संगठन को अल्प समय में ‘आयएस’ जितनी कामयाबी और प्रभाव हासिल नहीं हुआ था। कुछ ही महीनों पूर्व, क्रमांक एक की मानी जानेवाली आतंकी संगठन अल कायदा को भी ‘आयएस’ ने बहुत पीछे छोड दिया है।
किसी भी देश की भूमी का हिस्सा अल कायदा के कब्जे में नहीं था, मगर सीरिया और इराक का महत्वपूर्ण हिस्सा ‘आयएस’ के कब्जे में है। यह हिस्सा वापस पाने के लिए अमेरीका ही नहीं बल्कि ब्रिटन, फ्रान्स, कैनडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के हवाई दल हमले कर रहे हैं, मगर उन्हें कामयाबी नहीं मिल रही है। इतना ही नहीं बल्कि इराक के लगभग ११ इंधन कुएं आयएस के कब्जे में हैं। उन में से निकलनेवाला इंधन ‘आयएस’ की कमाई का साधन है। इसके साथ साथ परदेसी नागरिकों के अपहरण द्वारा ‘आयएस’ बडी रक्म हासिल करती है। वास्तव में आज तक कोई भी आतंकी संगठन नहीं कर पाई ऐसे गुलामों का व्यापार ‘आयएस’ कर रही है। इस निर्दयी संगठन का कहना है कि कब्जे में आए हुए गुलामों को बेचना कोई गलत बात नहीं है।
आज इराक-सीरिया की लगभग आधी जमीन ‘आयएस’ के कब्जे में है जिस पर दुबारा नियंत्रण पाना अमेरीका और मित्र देशों के लिए संभव नहीं हो पाया है। सीरिया के उत्तर में स्थित कोबेन शहर में ‘आयएस’ धरना मारकर बैठी है। अमेरीका और अरब देशों के लडाकु विमान कोबेन शहर में ‘आयएस’ के ठिकानों पर हवाई हमले करके ‘आयएस’ को झुकाने की कोशिशे कर रहे हैं। तो स्थानिक कुर्द और इराक के कुर्द सैनिक कोबेन ‘आयएस’ के कब्जे में न चले जाएं इसके लिए भी हमले किए जा रहे हैं। फिर भी पिछले दो महीनों से किए जा रहे इन हमलों में ‘आयएस’ को अमेरीका झटका भी नहीं दे पाई है। इसलिए अमेरीका ने पर्शियन खाई से भूमध्य समंदर तक तैनात अपनी फौज को भी शामिल कर लिया है। लडाकु तथा ड्रोन विमानों की सहायता से अमेरीका ‘आयएस’ पर ५०० से अधिक जगहों पर हवाई हमले कर चुकी है, मगर ‘आयएस’ पर इसका कोई भी असर नहीं हुआ।
दो सप्ताह पूर्व इराक के हवाई हमलों में ‘आयएस’ प्रमुख बगदादी के मारे जाने की खबर छापी गई थी। इसकी वजह से ‘आयएस’ को बडा झटका लगने का दावा भी कुछ अरबी न्यूज चैनलों ने किया था। मगर चार ही दिनों में ‘आयएस’ ने बगदादी का विडियो प्रसिद्ध करके सौदी अरेबिया और अन्य अरब देशों को घमकाया। पिछले तीन महीनों से इराक और सीरिया में चल रही खिलाफत की मुहीम सौदी अरेबिया, इजिप्त, येमेन, अलजेरिया इन देशों तक बढाने की बात का ऐलान करके बगदादी ने अमेरीका और मित्र देशों को बडा झटका दिया। इससे पहले बगदादी ने ‘खिलाफत’ की घोषणा करते हुए यूरोप से आग्नेय एशिया तक फैले हुए और अफ्रीकी देशों के समावेश वाली ‘इस्लामिक स्टेट’ स्थापन करने की घोषणा की थी। इसमें भारत की भी भूमी आती है, यह विशेष बात है।
आज दुष्मन पर परमाणु हमला करने की क्षमतावाली ‘आयएस’ एकमात्र आतंकी संगठन है। ‘आयएस’ के पास रासायनिक, जैविक और परमाणु शस्त्रों के भंडार होने का दावा किया जाता है। कहा जाता है कि, सद्दाम हुसेन के पतन के बाद इराकी लश्कर में स्थान हासिल न कर पानेवाले सद्दाम के सैंकडों सैनिक ‘आयएस’ में भरती हो गए हैं। इसकी वजह से सद्दाम का चचेरा भाई ‘केमिकल अली’ के कब्जे में रासायनिक शस्त्र ‘आयएस’ के हाथों लगने की संभावना कही जाती है। पिछले महीने स्पेन सरकार ने कहा कि फिलहाल अफ्रीका, अमेरीका और एशियाई देशों में खलबली मचानेवाले ‘इबोला’ के विषाणुओं का इस्तेमाल ‘आयएस’ द्वारा शस्त्रों की तरह किए जाने की संभावना है। स्पेन सरकार ने यह भी कहा है कि, इसके लिए ‘आयएस’ पाश्चात्य देशों में अकेले घूमनेवाले सरफिरे ‘लोन वूल्फ’ का इस्तेमाल कर सकते हैं।
अमेरीका, और युरोप में ऐसे सैंकडों ’लोन वूल्फ’ होने का दावा किया जाता है। ’आयएस’ के एक इशारे पर पाश्चात्य देशों में घातपात करने की क्षमता इन ’लोन वूल्फ’ में है। खास बात तो यह है कि ऐसे सरफिरे आतंकियों की जानकारी हासिल करना जासूसी संघटनाओं के लिए भी कडी चुनौती है।
‘आयएस’ प्रमुख द्वारा खिलाफत की घोषणा किए जाने के बाद पाश्चात्य देशों से सैंकडों नौजवान महिलाएं और पुरुष इससे प्रेरित होकर इराक-सीरिया में दाखल हुए। ‘आयएस’ में शामिल इन आतंकियों द्वारा अमेरीका, युरोप की सुरक्षा को इन देशों की सुरक्षा प्रणाली धोखे का इशारा दे रही है। और साथ ही साथ ‘आयएस’ के लिए पाश्चात्य देशों में रहकर घातपात करने के लिए तैयार इन ‘लोन वूल्फ’ का उन देशों की सुरक्षा को सर्वाधिक घोखे का इशारा भी दिया जा रहा है। पिछले कुछ महीनों में जर्मनी में लगभग ३० ‘लोन वूल्फ’ को हिरासत में लिए जाने की खबर युरोपियन देशों में भय पैदा करनेवाली साबित हुई।
‘आयएस’ नामक संगठन की पिछले कुछ महीनों की कारवाईयों से पता चलता है कि, यह केवल आतंकी कारवाईयों तक ही सीमित नहीं है। यह बात भी अब साबित हो चुकी है कि, इराकी तथा सीरियन नागरिकों की क्रूरता से हत्या करनेवाली, इंधन-गैस प्रकल्पों पर कब्जा पाकर इराक के नाक में दम करनेवाली ‘आयएस’ राजकीय ताकत का भी इस्तेमाल करती है। यह बात अल कायदा या अन्य आतंकी संघटनों को भी संभव नहीं हो पाई है।
‘आयएस’ प्रमुख बगदादी द्वारा ऐलान किए हुए ‘इस्लामिक स्टेट’ की सीमारेखा में ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान यह मध्य एशियाई देश भी शामिल हैं। इसलिए ‘आयएस’ अब ईरान के परमाणुअस्त्र संपादन करने के भयंकर षडयंत्र में जुटा है। यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि ‘आयएस’ ही ऐसी योजना बना रहा है कि ईरान इन परमाणुअस्त्रों को हासिल करने के लिए रशिया के साथ योजना बना रहा है।
इराक के इंधन प्रकल्पों का कब्जा रशिया को देकर ईरान के अणुकार्यक्रमों के गोपनीय दस्तावेज हासिल करने का प्रस्ताव ‘आयएस’ ने ही बनाया है। गालीचे बनाने का व्यवसाय ईरान में बडे पैमाने पर होता है। इसे नेस्तनाबूत करने का कार्य ‘आयएस’ ने अपने हाथ में लिया है। इस लिए अफगानी कारीगरों द्वारा बनाए गए गालीचे ईरान में लाए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय निर्बंधों की वजह से ईरान में पहले से ही ठंडे हुए रोजगार निर्माण पर इसका असर होगा, और जब इस बात का दबाव ईरान पर पडेगा तब यह देश ‘आयएस’ से अपने परमाणुस्त्रों का सौदा करने के लिए राजी हो जाएगा ऐसा दांव खेला जा रहा है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि ‘आयएस’ कितनी धूर्तता से आगे बढ रही है।
(क्रमश:)