Shree Aniruddha Chalisa - श्री अनिरुद्ध चलीसा
श्रीअनिरुद्ध चलीसा
दोहा
श्रीसद्गुरुसुमिरनबल
सब कछु करत सुहाई
अनिरुद्ध नाम की रटन लगाई
टूट गई दुख की डोरी ।।
जय अनिरुद्ध पूरण अवतारा
जय गोविंद परमसुखधामा ।।१।।
जय नंदारमणा बलवंता
रं रं रं रं जय अभिरामा ।।२।।
रात दिवस अनिरुध धुन गाँऊ
साथ में लायो सुचितसो दाऊ।।३।।
सब रिषिजन मिल जपत महेशु
गोपगोपीजन गात रमेशु ।।४।।
कातिर्कमास की पूरणमासी
प्रगट भयो जै जै त्रिपुरारि ।।५।।
पूरणशक्ति सर्व सुखखानी
दयाकृपाकर बल का दानी ।।६।।
गोपिनाथजी दर्शन पावत
श्रीविठ्ठल के चरणा लागत ।।७।।
स्वामीकृपा से जप रट चालत
बंश तुम्हारे है प्रभु आवत ।।८।।
पाय आशिषा वृद्ध अपारा
कहत कहानी निज कुलदारा ।।९।।
कुल अपने है विठ्ठल आवत
निरगुण से जब सगुण प्रकाशत ।।१०।।
श्यामल रूप मुनिजन सेवि
द्वार खड़ै नौ निधि की देवि ।।११।।
भाल चंद्रमा सोभत नीका
सहस सूरज परभा हो फीका ।।१२।।
भगत ने जब ही नाम पुकारा
तब ही बापू दुःख निवारा ।।१३।।
क्रिपा महान तुम सम नाही
राजा रंक भेद नहीं पाई ।।१४।।
साईनिवास में परगट ग्वाला
हेमाड्या की अंतिम ज्वाला ।।१५।।
पूजन मीनाभाभी कीन्हा
सद्गुरुरूप में दरसन दीन्हा ।।१६।।
सुरगणसहित इंद्र करी वंदन
भवभयनाशन खलदलमर्दन ।।१७।।
सूरजवंशी राम धराधर
चक्रपाणि हरि सद्गुण आगर ।।१८।।
नाम की सेज प्यार की माला
िèहदय सिंहासन बसत अकाला ।।१९।।
पुरुषार्था कलजुग भूल जाई
जुईगाँव बस काज दिखाई ।।२०।।
पंचपुरुष श्रद्धा बतलाई
धरमचक्र रख शुरू लड़ाई ।।२१।।
भारतवास की गौ जो माता
तुम बन खड़े गौ के त्राता ।।२२।।
नाश अधर्मा पालन धर्मा
यही कारण अवतारण वर्मा ।।२३।।
धरम ते भगति, जोग ही नामा
ज्ञान ते दर्शन अनिरुधधामा ।।२४।।
राम विराम सुखद अभिरामा
कलिमलभंजक अनिरुध नामा ।।२५।।
जगत में एक प्राणपति बापु
तासु बिमुख किमी लह विश्रामु ।।२६।।
बापु नामसम बल कछु नाही
रिपु बल नाश करई छनमाही ।।२७।।
महापापी जब नाम सुमिरही
जोर अपार दुखसागर तरही ।।२८।।
निज इच्छा अनिरुध अवतरइ
धरम प्रेम आनंदन लागी ।।२९।।
सेवा करबे वो बड़ भागी
चरम कृपालु बापु अनुरागी ।।३०।।
बापु नामबिनु करम अधूरा
श्रीदर्शन बिनु अन्न ही जहरा ।।३१।।
कोई मनोरथ बड़ मन माही
प्रयास करत पर फलवत नाही ।।३२।।
धीर धरहु ना होऊ उदासा
सब मिली जाऊ अनिरुधपासा ।।३३।।
अनिरुध नाम प्रफुल्लित गाता
टरत ही पीड़ रोग दूर जाता ।।३४।।
देख चरण सुमंगलमूला
जानऊँ बापु भगति अनुकूला ।।३५।।
परबत सम बड़ौ मम भागु
घोर पाप मालिक अनुरागु ।।३६।।
सदैव सरनागत हितकारी
करि रच्छण भवभयमलहारी ।।३७।।
बापु भगति को कहँऊ बखानी
सहज मार्ग जश पाव ही प्रानी ।।३८।।
अनिरुध गावत पुलक सरीरा
गद्गद् बानी अँखी बह नीरा ।।३९।।
बापु चरणधूली मोहे अतिप्रेमा
तन मन धन सेवा द्रिढ़ नेमा ।।४०।।
दोहा
अनिरुध चलीसा स्तोत्र यह इक मंत्र महान अपार
सर्व कामना पूरन प्रति व्यर्थ बचन ना जाय ।।
पिपा निरबुद्ध सहज जड, ना जानै जोग तप नेम
बापु क्रिपा नहि पाऊँ तसि, जसि चरणन्ही प्रेम ।।
नंदापति अनिरुद्ध की जय।
चक्रधर चिदानंद की जय।
बोलो रे भाई दाऊ सुचित की जय जय जय।
।। इति आद्यपिपाविरचितं श्रीअनिरुद्धचलीसास्तोत्रं सम्पूर्णम्।।