परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ३ सितंबर २०१५ के पितृवचनम् में 'दिन में कम से कम चौबीस मिनट तो उपासना करनी ही चाहिए' इस बारे में बताया।

एक चीज बोलता हूँ कि बड़े प्यार के साथ। वेद हैं चार, अठारह पुराण हैं, तेईस उपपुराण हैं, एक सौ आठ उपनिषद हैं, गीता है, रामायण है, महाभारत है, अपने ही सारे ग्रंथ हैं और बहुत सारे ग्रंथ हैं। इस भारत में अखंड बहुत सारा साहित्य है जो हमें अध्यात्म मार्ग पर ले चलता है।
लेकिन साईचरित्र है, राईट! वैसे ही अपना जो सद्गुरु है, उसकी कथाओं का स्मरण, सद्गुरु-हरिगुरुकीर्तन साईचरित्र में बार बार कहा है, राईट! ये जो होता है, ये हरिगुरु यानी सद्गुरु का संकीर्तन जो होता है, ये हमेशा इंसान को सबसे ज्यादा, जो अंदर आने का, अच्छे व्हायब्रेशन्स अंदर आने का जो मार्ग है, सबसे ज्यादा बडा कर देता है, ओके, सो सब कुछ करते हैं।
लोग कहते हैं बापू, हम लोग दादा को आकर पूछते हैं कि हम लोग कौन सी उपासना करें। मैंने कहाँ है कि मिनीमम चौबीस मिनट करनी ही चाहिए। ज्यादा जितनी हो सके जरूर कीजिए, कौन सी करनी है? जो आपको अच्छी लगती है वो करें। कि जो चीज अच्छी लगती है, पर बड़े दिल से होती है, लेकिन आपसे मैंने एक बार कहाँ है कि गुरुक्षेत्रम् का मंत्र, जो गुरुक्षेत्रम् मंत्र है, वो ऐसी बात है कि वो जो कम से कम आप एक बार तो करें ही। अंबज्ञ शब्द का, जो अंबज्ञ शब्द जो है उसे अपने मुह में, मन में फिट होना ही चाहिए, ओके! जैसे ‘हरि ॐ’ हमें फिट हो गया, ‘अंबज्ञ’ भी फिट होता मैं देख रहा हूँ, ‘श्रीराम’ शब्द फिट हो गया। येस, बस ऐसी छोटी छोटी चीजों से हमारा अध्यात्म आगे बढ़ने वाला है, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥