Sadguru Aniruddha Bapu

हमारे बापु

१ जनवरी २०१२ को ‘दैनिक प्रत्यक्ष’ के ‘मी पाहिलेला बापू’ इस विशेषांक में प्रकाशित हुआ लेख

हमारे बापु

‘दादा के सर’ यह मेरा बापु के साथ सन १९८५ में हुआ प्रत्यक्ष परिचय|

सुचितदादा जनरल मेडिसिन में एम.डी. करने के लिए डॉ. व्ही. आर. जोशीजी की युनिट में जॉईन हो गये| उस वक़्त बापु यानी डॉ. अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी भी उसी युनिट में सिनिअर लेक्चरर थे| वे मेरे दादा को फर्स्ट एम.बी.बी.एस. से समय समय पर मार्गदर्शन करते थे| दादा रेसिडेन्ट डॉक्टर के रूप में काम करने लगा और तब बापु नियमित रूप में उसे सिखाने लगे| इससे उनका रिश्ता अधिक गहरा बनता गया| उसके बाद धीरे धीरे दो घर किस तरह जुड़ गये और एकरूप हो गये इसका किसी को पता भी नहीं चला|

बचपन से दादा के शब्द का उल्लंघन न करने का नियम मुझे माँ -काका (मेरे पिताजी) ने बताया था और इस नियम का पालन मुझसे हमेशा ही होता रहा, यह बापु की ही कृपा है| साथ ही, बापु के शब्द का उल्लंघन न करने का मेरे दादा का दृढ़निश्चय और इसी वजह से मेरे द्वारा भी अपने आप ही बापु के शब्दों का पालन होने लगा, यह मेरे दादा की कृपा है|

बापु के साथ काम करना शुरू करके अब अठारह वर्ष बीत चुके हैं| इस अवधि में और इससे पहले भी बापु और दादा ने मुझे भरपूर सिखाया और उन्होंने मुझे बहुत कुछ दिया| यह सब लेते हुए और अन्य सबकुछ देखते हुए बापु के संपर्क में रह चुके कई पुराने लोगों के साथ मिलना हुआ और उनके साथ हुई बातचीत में से ही आज के विशेषांक का जन्म हुआ|

सुचितदादा से अनुमति प्राप्त हो जाते ही बापु से संबंधित विभिन्न व्यक्तियों से संपर्क किया और गुरुवार को सूचना भी की| सन २००५ में ही छोटे बड़े कई लेख प्राप्त हुए और उसके बाद भी कई लोग लेख देते ही रहे| उनमें से कुछ गिनेचुने अपवाद (एक्सेप्शन्स) छोड़ दिये जायें, तो बाक़ी के सभी लेख बहुत सुन्दर हैं| चंद कुछ लेखों में बापु का नाम बस लेकर लेखक अपना ही ढिंढ़ोरा पीटना चाहते थे| यह ध्यान में आ जाते ही सभी लेख सुचितदादा को सौंप दिये| उन्होंने हर ल़फ़्ज़ पढ़ा और इस तरह के दांभिक लेखों को हटा दिया| (ज़्यादा से ज़्यादा चार या पॉंच|)

इस विशेषांक में उन सैंकड़ों अच्छे लेखों में से कुछ गिनेचुने लेखों एवं कुछ ही इंटरव्ह्यूज़ का समावेश करना संभव हुआ है| इन तथा अन्य सब लेखों को मिलाकर ‘यादों के पन्नें पलटते हुए’ इस पुस्तक को प्रकाशित करने की सभी की इच्छा है| लेकिन उसके लिए जब दादा से इजाज़त मिलेगी तब ही|

बापु के अनोखे व्यक्तित्व को, उनकी सत्यम् शिवम् सुंदरम् रहनेवाली जीवनशैली को एवं कार्यप्रणालि को महज़ दर्ज़ तक करना भी बहुत मुश्किल है| अत एव यह विशेषांक या आगे चलकर प्रकाशित होनेवाला पुस्तक बापु के सभी पहलुओं को छू सकेगा यह कहना धृष्टता होगी|

इन लेखों को पढ़ते समय मुझे सबसे महत्त्वपूर्ण एहसास इस बात का हुआ कि इतने विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को इतने सालों से कितना प्रेम है! साथ ही, मैं आपको यह भी बताना चाहता हूँ कि स्वयं बापु भी अपने पुराने आप्त-मित्रों के बारे में बड़ी आत्मीयतापूर्वक बातें करते हैं| इस विशेषांक के लगभग प्रत्येक लेखक का नाम मैंने बापु के मुख से सुना है| बापु बड़ी ही आत्मीयता पूर्वक उन सबके बारे में बात करते हुए बहुत खुश दिखायी देते हैं| बापु को मैंने कभी भी कड़वी यादों का उच्चारण तक करते हुए नहीं सुना है| उनके पास रहती हैं, किसी की भी स़िर्फ अच्छी ही यादें, स्मृतियॉं| दरअसल काका (आद्यपिपा) कहते थे, उसके अनुसार - ‘इसे किसी के भी दोष कभी चुभते नहीं और इसकी मेमरी बँक में प्रत्येक का जितना भला उतना ही संग्रहित रहता है|’

इस विशेषांक का कार्यकारी संपादक बनने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ, यह भी बापु की माँ की ही कृपा है|

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