नवरात्रि-पूजन - आदिमाता दुर्गा एवं भक्तमाता पार्वती का एकत्रित नवदुर्गा पूजन

भाग १      भाग २     मराठी     

फिलहाल मनाये जा रहे आश्विन नवरात्रि-उत्सव से, नवरात्रिपूजन की शुद्ध, सात्त्विक, आसान, मग़र फिर भी श्रेष्ठतम पवित्र पद्धति श्रद्धावानों के लिए उपलब्ध कराके परमपूज्य सद्‍गुरु ने सभी श्रद्धावानों को अत्यधिक कृतार्थ कर दिया है। इस उत्सव के उपलक्ष्य में, कई श्रद्धावानों ने अपने घर में बहुत ही भक्तिमय एवं उत्साहपूर्ण माहौल में मनाये जा रहे इस पूजन की, आकर्षक एवं प्रासादिक सजावट के साथ खींचीं तस्वीरें, "नवरात्रिपूजन" इस शीर्षक के अंतर्गत ख़ास निर्माण किये गये फेसबुकपेज पर पोस्ट की हैं। ऐसे इस विशेष नवरात्रिपूजन के संदर्भ में, ‘दैनिक प्रत्यक्ष’ में रविवार, दि. १३ अगस्त २०१७ को प्रकाशित हुए अग्रलेख में सद्गुरू बापू ने दी हुई बहुत ही महत्त्वपूर्ण जानकारी का मैं यहाँ पर अनुरोधपूर्वक उल्लेख करना चाहता हूँ।

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इस अग्रलेख में बतायेनुसार, "श्रीशांभवीविद्या" की पहली कक्षा की महिमा वर्णन करते हुए देवर्षि नारद भक्तमाता पार्वती को संबोधित कर कहते हैं,

हे पार्वती, तुम आदिमाता की ऐसी विलक्षण कन्या हो, जिसकी हर एक कृति में ‘शांभवीविद्या’ ही एकमात्र मार्ग होता है और इसी कारण इस शांभवीविद्या की तपस्या कर रहे तुम्हारे ही नौ रूप ‘नवदुर्गा’ के रूप में विख्यात हैं। १) शैलपुत्री २) ब्रह्मचारिणी ३) चंद्रघंटा ४) कूष्माण्डा ५) स्कंदमाता ६) कात्यायनी ७) कालरात्री ८) महागौरी ९) सिद्धिदात्री।’’

फिर सारे ऋषिसमूह की ओर मुड़कर देवर्षि नारद ने कहा, ‘‘पार्वती के इन नौ रूपों का पूजन नवरात्रि में क्रमश: एक एक दिन किया जाता है। 

क्योंकि जिस प्रकार से ‘श्रीसूक्त’ यह भक्तमाता लक्ष्मी और आदिमाता महालक्ष्मी इनका एकत्रित स्तोत्र है; उसी प्रकार से ‘नवरात्रि-पूजन’ यह भक्तमाता पार्वती और आदिमाता दुर्गा का एकत्रित पूजन है।”

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ऐसे इस भक्तमाता पार्वती के, "नवदुर्गा" के रूप में विख्यात होनेवाले, शांभवीविद्या की तपस्या में धारण किये हुए नौं रूपों के चित्र मैं श्रद्धावानों के संदर्भ के लिए यहाँ पर दे रहा हूँ।

                                     

फिलहाल श्रद्धावानों के घरों में मनाये जा रहे नवरात्रिपूजन की विशेष पद्धति का लाभ उठाते समय, उपरोक्त अग्रलेख की स्मृति एवं ‘नवदुर्गा’ के चित्रों के दर्शन, श्रद्धावानों का आनंद निश्चित ही दुगुना करेंगे, इस बात का मुझे यक़ीन है।

हरि ॐ । श्रीराम । अंबज्ञ ।